देखिये अँधेरा है घना
रौशनी को है लाना
अच्छी नहीं ये ख़ामोशी
जो चुप हैं , वे हैं अपराधी
बोलेंगे नहीं आप तो
बोलेगा कौन
कब तक रहेंगे आप
दमन पर मौन
स्थिति नहीं यह सीधी सादी
जो चुप हैं , वे हैं अपराधी
रोटी का हल मिला अभी कहाँ
रौशनी की मंजिल मिली अभी कहाँ
जस के तस हैं हालात अब यहाँ
बचेंगे आप कब तक यहाँ
तटस्थता है भीषण बर्बादी
जो चुप हैं, वे हैं अपराधी
बाढ़ है बीमारी है
है कितनी बेगारी
जनता कोसती किस्मत को
कितनी है लाचारी
बोलो अब तो बोलो
अच्छी नहीं यह आपाधापी
जो चुप हैं, वे हैं अपराधी
मर गए जो बच्चे पूछो उनसे
कितनी थी तकलीफ
उनकी माओं से पूछो
लाश है जिनके पीठ
धिक्कार है ऐसी आबादी
जो चुप हैं, वे हैं अपराधी
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, 'महाकाल' की विलुप्तता के ७२ वर्ष - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंह्रदय की पीड़ा का शब्दों से वर्णन करना कोई आपसे सीखे।
जवाब देंहटाएंकचोटती है आपकी रचना ...
जवाब देंहटाएंकब कब और कितनी बार मन अपराधी बनेगा पर एक आवाज़ चाहिए जो जरूर आएगी ...
रायशुमारी पर लिखना है बहुत दिनों से सोच में है। कुछ लोगों के हिसाब से जो बोल रहे हैं वो ज्यादा बड़े अपराधी हैं ।
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