घट गई खेती
मिट गये किसान
नहीं पूछा गया संसद में इसके बारे में कोई प्रश्न
स्कूल कालेज से निकल
सड़क और कारखानों के बीच
धक्का खाते युवाओं पर भी
नहीं पूछा गया संसद में कोई प्रश्न
इस मानसून
बाढ़ लील गई हजारों जाने
नदियाँ उफन कर
गली मोहल्लों में घुस गई
संसद के मानसून सत्र में इस बारे में भी नहीं हुआ कोई हंगामा
इस विषय पर कभी नहीं रुकी कोई कार्यवाही कि
अस्पतालों में डाक्टर नहीं है
नहीं है दवाइयां
स्त्रियाँ अब भी मरती हैं लाखों में जनते हुए बच्चा
मरे हुए लाश को ढोने के लिए भी नहीं है एम्बुलेंस
दलगत विरोधों से ऊपर उठते हुए
सांसद ऐसे स्याह प्रश्नों को उठा नहीं खराब करना चाहते हैं
सब्सिडी वाले कैंटीन में बने मुर्गे का जायका
जबकि आंकड़े बता रहे हैं सस्ती हो रही हैं दालें, गेंहूं आदि आदि।
जन की बात करने को फुर्सत कहा है इस लोकतंत्र को ... अपने अपने मसले तो सुलझा लें पहले ...
जवाब देंहटाएंमसीहे लोकतंत्र के मौज में हैं अब बाकी की फुरसत में बात करेंगे।
जवाब देंहटाएंनमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति गुरूवार 3 अगस्त 2017 को "पाँच लिंकों का आनंद "http://halchalwith5links.blogspot.in के 748 वें अंक में लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा ,आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।
बहुत ही बेहतरीन article लिखा है आपने। Share करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)
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