हममें रावण
तुममे रावण
हम सब में
रावण रावण
ऊपर रावण
नीचे रावण
क्षितिज क्षितिज
रावण रावण
पूरब रावण
पश्चिम रावण
दशों दिशा में
रावण रावण
भीतर रावण
बाहर रावण
मन मानस में
रावण रावण
पल में रावण
क्षण में रावण
घट घट में
रावण रावण
कहां नहीं है
रावण रावण !
किसमें नहीं है
रावण रावण !
क्यों उसका हम
वध करें
पूछ रहा है यह
रावण रावण।
रावण राजा रावण प्रजा रावण राज
जवाब देंहटाएंरावण कल और रावण आज :)
वाह, रावण कल और रावण आज!
हटाएंक्यों उसका हम वध न करें पूछ रहा है राम भी, जो स्वयं रावण की तरह सर्वव्यापी है और उसके पार भी
जवाब देंहटाएंवध तो निश्चित है ... चाहे प्रकृति करे ... चाहे हम ...
जवाब देंहटाएंजलता फिर क्यूँ एक ही रावण,
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बहुत सुन्दर रचना
आपकी कविता सीधे दिल और दिमाग दोनों से सवाल करती है। मुझे इसमें रावण कोई एक पात्र नहीं, बल्कि हमारी आदतें और अहंकार दिखते हैं। आप साफ कहते हैं कि दोष बाहर नहीं, भीतर भी है। यही बात सबसे ज्यादा चुभती है और जरूरी भी लगती है।
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