पकने लगे हैं धान
बजने लगा है
हवा में संगीत
घुलने लगी है
ठंढ, धूप में .
झड़ने लगी है
रातरानी
लदने लगे हैं
अमलतास ओस से
पकते हुए धान के साथ .
खलिहान की आतुरता
देखते ही बनती है
धान के स्वागत के लिए .
बहुत सुंदर रचना सर।धान की बालियाँ सुखों की जालियाँ-----सादर।जी नमस्ते,आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी हैपांच लिंकों का आनंद पर...आप भी सादर आमंत्रित हैं।सादरधन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता जी
सुन्दर
धन्यवाद सर।
बहुत सुंदर रचना
शुक्रिया हरीश जी
बहुत सुंदर रचना सर।
जवाब देंहटाएंधान की बालियाँ
सुखों की जालियाँ
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सादर।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता जी
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया हरीश जी
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