शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

अस्तित्व बचाता बूढ़ा छायाकार

कल ही लौटा हूँ मैं एक संगीत सम्मेलन से 

जहां मिला था मुझे एक बूढ़ा छायाकार 

उसके पास था एक भारी भरकम बैग 

जिसमें रहे होंगे तरह तरह के लैंस। 


उसकी पहुँच मंच  तक थी 

वह मंच के नीचे बेहद करीब से 

कभी आधा झुक कर तो कभी लगभग लेट कर 

कोशिश कर रहा था पकड़ने की 

उस एक क्षण को जब कलाकार होता है 

अपने आनंद के उत्कर्ष पर 

जब कला की आत्मा तृप्त हो रही होती है 

कलाकार के सानिध्य में 

और उस एक क्षण को कैमरे में कैद करने के लिए 

वह नहीं लग रहा था 

किसी कलाकार से कम 

तपस्या या साधना में लीन । 


जब लोग भाग रहे थे कलाकार के पीछे 

छू लेना चाहते थे उन्हें एक बार 

लेना चाहते थे उनके साथ एक तस्वीर 

लगभग धकिया ही दिया गया था 

वह बूढ़ा छायाकार 

गिरते गिरते बचा था वह । 


इस युग में जब तस्वीरों से पटी पड़ी है दुनियाँ 

छायाचित्रों के सैलाब में डूब रहा है विश्व 

अपने अस्तित्व को बचाने में 

बेहद थका और निराश सा लग रहा था 

वह बूढ़ा छायाकार । 


जब मचा हुआ है चारों ओर रंगों का आतंक 

उसके गैलरी में बड़े बड़े कलाकारों के 

वे अनमोल क्षण फांक रहें हैं धूल

श्वेत-श्याम में  ! 

2 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुंदर
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 18 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं