कल तक
होता जो था धरोहर अनमोल
आज उसका तय कर दिया गया है
अपना मोल
होता जो था धरोहर अनमोल
आज उसका तय कर दिया गया है
अपना मोल
कुछ प्रति नग तो कुछ प्रति किलो
सहेज कर जो
रखे जाते थे बच्चो के कपडे
और रोमांचित हुआ करते थे
वर्षो बाद
सुखद स्मृतियों
कर लिया करते थे ताज़ी
अब नहीं हुआ करेंगी
बिकने लगे हैं
लगने लगे हैं भाव
पुराने कपड़ो के भी
उतरन से
ढकी जाती थी
दूसरो की देह
कई बार भरा होता था
इसमें भी नेह
अब नहीं हुआ करेगा
ऐसा
कबाड़ जो हो गए हैं
हमारे पहिरन
बिकने लगे हैं
कांसे पीतल
अलमुनियम
और फिर स्टील की थाली, कटोरी, गिलास
इन पर खुदे होते थे
बच्चो के नाम
दादा दादी के नाम
माँ बाबूजी के नाम
पीढियां संजोती थी इन्हें
जीती थी इन्हें रोज़ ही
अब नहीं होगा कुछ ऐसा
पुराने बर्तनों के बदले
मिल जाते हैं बर्तन नए
बाबूजी उतार कर
दे दिया करते थे
अपना जूता
जब आने लगता था बेटे को
और गर्व से होता था
जूते की उम्र का जिक्र
पुराने जूते काटा नहीं करते एडियाँ
कहा करते थे पुराने लोग
और फिर आरामदेह भी हुआ करते थे
जूते अब नहीं बदलते
पीढियां
व्याकरण, साहित्य, शब्दकोष
चलती थी कई पीढ़िया
कई बार मिल जाते थे उनके बीच
मोर के पंख
फूलों की सूखी किन्तु
व्याकरण, साहित्य, शब्दकोष
चलती थी कई पीढ़िया
कई बार मिल जाते थे उनके बीच
मोर के पंख
फूलों की सूखी किन्तु
सहेज कर रखी गई पंखुड़ियां
लिख कर मिटाया गया किसी का नाम
सिले होते थे मोटे खादी के धागों से मोटी किताबें
रंग दिया जाता था सिलाई के धागों को
अब किलो के भाव बिक जाती हैं कहीं भी
खो जाते हैं, अनाथ हो जाते हैं
मोर के पंख, पंखुड़ियां और
लिख कर मिटाया गया किसी का नाम
सिले होते थे मोटे खादी के धागों से मोटी किताबें
रंग दिया जाता था सिलाई के धागों को
अब किलो के भाव बिक जाती हैं कहीं भी
खो जाते हैं, अनाथ हो जाते हैं
मोर के पंख, पंखुड़ियां और
कुछ नाम भी
हो गए हैं संदूक खाली
दालान के , मन के
सब यादें हो गई हैं अब कबाड़ .
हो गए हैं संदूक खाली
दालान के , मन के
सब यादें हो गई हैं अब कबाड़ .
यह कविता सनातन मूल्यों से दुराव की वेदना की अनंत गाथा है. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंखाद बन कर नई फसल देंगी.
जवाब देंहटाएं"हो गए हैं संदूक खाली
जवाब देंहटाएंदालान के , मन के
सब यादें हो गई हैं अब कबाड़"
क्या ऐसा भी होता है अरुणजी. कुछ यादें तो जरूर सहज के रखी जाती ही होंगी.वैसे कहा गया है 'एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल,प्यारे रह जायेंगे जग में तेरे बोल'.शानदार बोलों को तो सहज कर रखना ही चाहिये.
आपका मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई'पर इंतजार है.
शानदार प्रस्तुति.यादें भी स्वरुप बदल चुकी हैं बदलते वक्त में.
जवाब देंहटाएंवाह.....शानदार लगी ये पोस्ट......किस क़दर खूबसूरती से आपने व्यंग्य में लपेटा है इस नाज़ुक से मसले को....शानदार |
जवाब देंहटाएंपुराने लोग घर की पुरानी चीज़ों को धरोहर समझ कर रखते थे,और देख देख कर ख़ुश होते थे मगर अब सब उलट गया है.आधुनिक सोंच का बेहतरीन चित्रण और उस पर अच्छा व्यंग आपकी कविता में देखने को मिला..
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंअच्छी है।
जवाब देंहटाएंsamano ke sath hi sambandhon aur yadon ki bhi umra bahut chhoti ho gayee hai....
जवाब देंहटाएंयादें उनके मूल्य से रहती हैं, भौतिकता में सब तिरोहत हो गये हैं।
जवाब देंहटाएं*तिरोहित
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंअरुण जी,
जवाब देंहटाएंहमारे यहां आज भी कपड़ों के बदले बर्तन खरीदने की परम्परा नहीं है.. जो जुड़ाव आपने दिखाया उन परिधानों के प्रति वो सचमुच अब बाकी नहीं.. कपडे रेडीमेड हो गए हैं इसलिए भावनाएं भी फैशन के दौर में टिकाऊ नहीं रह गईं.. बाप का जूता बेटे के पैर आने पर बेटा बाप का दोस्त बन जाता था.. ये दो पीढ़ियों का जुड़ाव सचमुच कबाड बन गया.. संवेदनशील अभिव्यक्ति, हमेशा की तरह!!
हो गए हैं संदूक खाली
जवाब देंहटाएंदालान के , मन के
सब यादें हो गई हैं अब कबाड़ .
apnepan kee yaadon kee khushboo kahin nahi milti
जूते अब नहीं बदलते
जवाब देंहटाएंपीढियां
in do pangtion men jane kitna kuch kah diya...behad komal kavita.....ekdam man ke paas.
कल तक
जवाब देंहटाएंहोता जो था धरोहर अनमोल
आज उसका तय कर दिया गया है
अपना मोल
कुछ प्रति नग तो कुछ प्रति किलो.....
और कुछ बेमोल .
हो गए हैं संदूक खाली
जवाब देंहटाएंदालान के , मन के
सब यादें हो गई हैं अब कबाड़ ...
आज के समय की सार्थक और सटीक चित्रण...बहुत सुन्दर
"हो गए हैं संदूक खाली
जवाब देंहटाएंदालान के , मन के
सब यादें हो गई हैं अब कबाड़"
बहुत ही संवेदनशील कविता लिखी है आपने....चीज़ों से लिपटी कितनी ख़ूबसूरत यादें बसती थीं,मन में ....पर आज सब कबाड़ में तब्दील हो गयी हैं.
किसी कोने में पड़ी उपेक्षित वस्तुओं पर कविता लिख डालने की अद्भुत क्षमता है आपमें...
aapke signature style men acchi kavita hai arun sir
जवाब देंहटाएंसब यादें हो गई हैं अब कबाड़
जवाब देंहटाएंVivek Jain vivj2000.blogspot.com
हर वस्तु बाज़ार की भेंट चढ़ गयी है...अब संवेदनाएं ही नहीं हैं तो कौन सहेजे गा पुरानी चीजें और पुराने पल...बेहतरीन रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
आदरणीय अरुण जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
अच्छा व्यंग आपकी कविता में
सार्थक और सटीक चित्रण............बहुत सुन्दर
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जवाब देंहटाएंhttp://shayari10000.blogspot.com