प्रश्न
लघु है
उत्तर शायद
जटिल
ब्रह्माण्ड के
विस्तार का
ज्ञान नहीं जब
एक मनुज की
क्या हो सकती है
सीमा ही
विज्ञान के नित नए
शोध से कहीं अधिक
प्रकृति की है
विपुल सम्पदा
फिर कहो
एक मानव की
क्या हो सकती है
कोई संपत्ति
आस्था पर
उठ रही है
जो विश्व की
उंगलियाँ
कई और प्रश्न
खड़े हो
पूछते हैं
क्या है मेरा अस्तित्व
गणना नहीं
हो सकती है
जिसकी गति का
उस से कहे कोई
रुको जो पल भर के लिए,
रौशनी कहो कभी
क्या ठहरी है
किसी के लिए
मन में
क्यों रखूँ मैं
कोई विषाद
क्यों कहो
हो कोई
मुझे अवसाद
खाली हाथ जो आया हो
कहो कैसे हो उसका कोई अधिकार
कहो है ना मेरा
व्यर्थ ही यह प्रलाप !
कहो है क्या
इस सरल प्रश्न का
कोई उत्तर सहज
लघु है
उत्तर शायद
जटिल
ब्रह्माण्ड के
विस्तार का
ज्ञान नहीं जब
एक मनुज की
क्या हो सकती है
सीमा ही
विज्ञान के नित नए
शोध से कहीं अधिक
प्रकृति की है
विपुल सम्पदा
फिर कहो
एक मानव की
क्या हो सकती है
कोई संपत्ति
आस्था पर
उठ रही है
जो विश्व की
उंगलियाँ
कई और प्रश्न
खड़े हो
पूछते हैं
क्या है मेरा अस्तित्व
गणना नहीं
हो सकती है
जिसकी गति का
उस से कहे कोई
रुको जो पल भर के लिए,
रौशनी कहो कभी
क्या ठहरी है
किसी के लिए
मन में
क्यों रखूँ मैं
कोई विषाद
क्यों कहो
हो कोई
मुझे अवसाद
खाली हाथ जो आया हो
कहो कैसे हो उसका कोई अधिकार
कहो है ना मेरा
व्यर्थ ही यह प्रलाप !
कहो है क्या
इस सरल प्रश्न का
कोई उत्तर सहज
सदियों से तलाश है मानव को इस प्रश्न की लेकिन सभी अनुतरित ही हैं .....अनुमान ही हैं हमारे पास तथ्य कोई भी नहीं .....बेहतर और विचारणीय प्रस्तुति ......!
जवाब देंहटाएंरौशनी कहो कभी
जवाब देंहटाएंक्या ठहरी है
किसी के लिए
गहन प्रश्न लिए ...चिंतन लिए रचना ...
कुछ प्रश्न ऐसे अबूझ हैं जिनके उत्तर पाना तो दूर उन प्रश्नों को भी अनदेखा करता गया है मनुज... उनमें से बहुत से प्रश्न आपने यहाँ रख दिए हैं... जिस दिन इस सरल प्रश्न का सहज उत्तर सूझ गया, उस दिन मनुष्य परमात्मा को उपलब्ध हुआ!!
जवाब देंहटाएंकविता एक चिंतन को जन्म देती है!!
गहन चिंतन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, विचारणीय अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंमैं हूँ कौन
जवाब देंहटाएंप्रश्न कठिन है
जाना होता
तो फिर क्या मैं
ब्लॉगिंग करता?
बुद्ध बना कहीं निर्जन में
सुबह सबेरे
अंधियारे को प्रवचन देता।
मैं हूँ कौन
कौन हैं मेरे
यही प्रश्न तो
उलझाते हैं
उत्तर नहीं मिला आज तक
सिर्फ प्रश्न ही
पढ़ पाते हैं।
क्या हूँ मैं ? जब प्रश्न उठता है तो उत्तर अनसुलझे होते हैं .... क्या नहीं हूँ मैं ... यह सोच विश्वास है, सरल पहचान और सुकून
जवाब देंहटाएंसशक्त उम्दा रचना....
जवाब देंहटाएंशब्दों की कारीगरी कोई आप से सीखे
मन में
जवाब देंहटाएंक्यों रखूँ मैं
कोई विषाद
क्यों कहो
हो कोई
मुझे अवसाद
खाली हाथ जो आया हो
कहो कैसे हो उसका कोई अधिकार
कहो है ना मेरा
व्यर्थ ही यह प्रलाप !
इस प्रश्न का उत्तर मिलते ही मुक्ति मिल जाती है.......बहुत सुन्दर है पोस्ट|
ऐसे बहुत से प्रश्न रहस्य हैं मानव की लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावी रचना ...
बढ़िया प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंछोटा सा प्रश्न, मैं। उत्तर की संभावना, सब कुछ।
जवाब देंहटाएंसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
जवाब देंहटाएंविज्ञान के नित नए
जवाब देंहटाएंशोध से कहीं अधिक
प्रकृति की है
विपुल सम्पदा
फिर कहो
एक मानव की
क्या हो सकती है
कोई संपत्ति
गहन चिंतन को प्रेरित करती कविता...
अरुण जी ... यह एक शाश्वत प्रश्न है। हल बहुत कम लोग ही ढूंढ़ पाए हैं।
जवाब देंहटाएंहम सितारों की दूरी तथा समुद्र की गहराई का अन्वेषण करते हैं परन्तु हम कौन हैं तथा इस संसार में क्यों आये हैं, इस विषय में कितना जानते हैं?
इसका कारण भी है --
स्वयं की खोज के लिए स्वयं के प्रति सच्चा बनना पड़ता है।
अरुण जी ... यह एक शाश्वत प्रश्न है। हल बहुत कम लोग ही ढूंढ़ पाए हैं।
जवाब देंहटाएंहम सितारों की दूरी तथा समुद्र की गहराई का अन्वेषण करते हैं परन्तु हम कौन हैं तथा इस संसार में क्यों आये हैं, इस विषय में कितना जानते हैं?
इसका कारण भी है --
स्वयं की खोज के लिए स्वयं के प्रति सच्चा बनना पड़ता है।
सुन्दर और सार्थक कविता
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