मंगलवार, 10 जनवरी 2012

क्या हूं मैं

प्रश्न
लघु है
उत्तर शायद
जटिल

ब्रह्माण्ड के
विस्तार का
ज्ञान नहीं जब
एक मनुज की
क्या हो सकती है
सीमा ही

विज्ञान के नित नए
शोध से कहीं अधिक
प्रकृति की है
विपुल सम्पदा
फिर कहो
एक मानव की
क्या हो सकती है
कोई संपत्ति

आस्था पर
उठ रही है
जो विश्व की
उंगलियाँ
कई और प्रश्न
खड़े हो
पूछते हैं
क्या है मेरा अस्तित्व

गणना नहीं
हो सकती है
जिसकी गति का
उस से कहे कोई
रुको जो पल भर के लिए,
रौशनी कहो कभी
क्या ठहरी है
किसी के लिए

मन में
क्यों रखूँ  मैं
कोई विषाद
क्यों कहो
हो कोई
मुझे अवसाद
खाली हाथ जो आया हो
कहो कैसे हो उसका कोई अधिकार
कहो है ना मेरा
व्यर्थ ही यह प्रलाप  !

कहो है क्या
इस सरल प्रश्न का
कोई उत्तर सहज

17 टिप्‍पणियां:

  1. सदियों से तलाश है मानव को इस प्रश्न की लेकिन सभी अनुतरित ही हैं .....अनुमान ही हैं हमारे पास तथ्य कोई भी नहीं .....बेहतर और विचारणीय प्रस्तुति ......!

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  2. रौशनी कहो कभी
    क्या ठहरी है
    किसी के लिए

    गहन प्रश्न लिए ...चिंतन लिए रचना ...

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  3. कुछ प्रश्न ऐसे अबूझ हैं जिनके उत्तर पाना तो दूर उन प्रश्नों को भी अनदेखा करता गया है मनुज... उनमें से बहुत से प्रश्न आपने यहाँ रख दिए हैं... जिस दिन इस सरल प्रश्न का सहज उत्तर सूझ गया, उस दिन मनुष्य परमात्मा को उपलब्ध हुआ!!
    कविता एक चिंतन को जन्म देती है!!

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  4. बहुत सुन्दर, विचारणीय अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  5. मैं हूँ कौन
    प्रश्न कठिन है
    जाना होता
    तो फिर क्या मैं
    ब्लॉगिंग करता?
    बुद्ध बना कहीं निर्जन में
    सुबह सबेरे
    अंधियारे को प्रवचन देता।

    मैं हूँ कौन
    कौन हैं मेरे
    यही प्रश्न तो
    उलझाते हैं
    उत्तर नहीं मिला आज तक
    सिर्फ प्रश्न ही
    पढ़ पाते हैं।

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  6. क्या हूँ मैं ? जब प्रश्न उठता है तो उत्तर अनसुलझे होते हैं .... क्या नहीं हूँ मैं ... यह सोच विश्वास है, सरल पहचान और सुकून

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  7. सशक्त उम्दा रचना....
    शब्दों की कारीगरी कोई आप से सीखे

    जवाब देंहटाएं
  8. मन में
    क्यों रखूँ मैं
    कोई विषाद
    क्यों कहो
    हो कोई
    मुझे अवसाद
    खाली हाथ जो आया हो
    कहो कैसे हो उसका कोई अधिकार
    कहो है ना मेरा
    व्यर्थ ही यह प्रलाप !

    इस प्रश्न का उत्तर मिलते ही मुक्ति मिल जाती है.......बहुत सुन्दर है पोस्ट|

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  9. ऐसे बहुत से प्रश्न रहस्य हैं मानव की लिए ...
    बहुत ही प्रभावी रचना ...

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  10. छोटा सा प्रश्न, मैं। उत्तर की संभावना, सब कुछ।

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  11. सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

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  12. विज्ञान के नित नए
    शोध से कहीं अधिक
    प्रकृति की है
    विपुल सम्पदा
    फिर कहो
    एक मानव की
    क्या हो सकती है
    कोई संपत्ति

    गहन चिंतन को प्रेरित करती कविता...

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  13. अरुण जी ... यह एक शाश्वत प्रश्न है। हल बहुत कम लोग ही ढूंढ़ पाए हैं।
    हम सितारों की दूरी तथा समुद्र की गहराई का अन्‍वेषण करते हैं परन्‍तु हम कौन हैं तथा इस संसार में क्‍यों आये हैं, इस विषय में कितना जानते हैं?
    इसका कारण भी है --
    स्‍वयं की खोज के लिए स्‍वयं के प्रति सच्‍चा बनना पड़ता है।

    जवाब देंहटाएं
  14. अरुण जी ... यह एक शाश्वत प्रश्न है। हल बहुत कम लोग ही ढूंढ़ पाए हैं।
    हम सितारों की दूरी तथा समुद्र की गहराई का अन्‍वेषण करते हैं परन्‍तु हम कौन हैं तथा इस संसार में क्‍यों आये हैं, इस विषय में कितना जानते हैं?
    इसका कारण भी है --
    स्‍वयं की खोज के लिए स्‍वयं के प्रति सच्‍चा बनना पड़ता है।

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