भाई हीरालाल
बन गए हो तुम
एक रिटेल ब्रांड
तुम्हारी जलेबियों का वज़न
कर दिया गया है नियत
कितनी होगी चाशनी
यह भी कर दिया गया है
निर्धारित
तैयार किया जा रहा है
तुम्हारे नाम का
एक प्रतीक चिन्ह
तुम्हारी दूकान का
'प्रोटोटाइप" हो रहा है तैयार
लोग जोर शोर से लगे हैं
बनाने को तुम्हे
एक नया ब्रांड
पुरखों से बनी
तुम्हारी ही पहचान को
भुनाने में लगा है बाज़ार
रहना सावधान
भाई हीरालाल हलवाई
तुम्हारे लड्डू,
जलेबी, इमरती, रसगुल्ले आदि आदि
नंगे हाथ
अब कारीगर नहीं बनायेंगे
समझा दिया गया है तुम्हे
'हाइजेनिक' नहीं है
नंगे हाथ बनाना मिठाई
पूरी तरह स्वचालित होगी
तुम्हारी मिठाई बनाने की फैक्ट्री
हाथों में प्लास्टिक के पारदर्शी दस्ताने पहन
वज़न की जायेगी मिठाई
तुम्हारे स्वाद को हो सकता है
करा लिया जाये पेटेंट भी
और तैयार कर लिया जाये
सिंथेटिक फ्लेवर
और देश विदेश में
खुल जायेंगे तुम्हारे कई स्टोर
जिसमे तुम्हारे पुरखो की पूंजी
उनके पसीने की गंध
हाथ का स्वाद और
कारीगरी का निवेश है
हीरालाल हलवाई
एक दिन ऐसा भी आएगा
जब तुम्हारे नाम पर
लिया जायेगा
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (ऍफ़ ड़ी आई )
और छिन जायेगा
तुम्हारा स्वाबलंबन
तुम्हारा एकाधिकार
और अपने ही ब्रांड के
निदेशक बोर्ड में
नहीं रहेगा तुम्हे
निर्णय लेने का कोई अधिकार
धीरे धीरे मिठाइयों को
बेदखल होना होगा
आकर्षक रैपर वाले
चाकलेटों से
हीरालाल हलवाई
ब्रांड होने की प्रक्रिया में
आने लगी है
तुम्हारी दुकान से
प्लास्टिक की विषैली गंध !
अरुण जी, आपकी यह कविता धारदार है, नुकीली है, पैनी है। हो भी क्यों नहीं। किसी दर्द पीड़ित मन में ऐसी कविता और ऐसे भाव उठना स्वाभाविक ही है।
जवाब देंहटाएंमुझे धर्मवीर भारती की पंक्तिया याद आ रही हैं --
हम सबके मन में गहरा उतर गया है युग
अश्वत्थामा है, संजय है, अंधियारा है
है दासवृत्ति उन दोनों प्रहरियों की
अंधा संशय है लज्जाजनक पराजय है।
क्या बात है हीरा लाल हलवाई
जवाब देंहटाएंअरुण जी ने तुम पर सुन्दर कविता है बनाई.
हमें तो याद रहेंगीं तुम्हारी खस्ता बालूशाही.
बहुत सुन्दर और एक चेतावनी... बेहद खूब... जैसे हल्दीराम ..
जवाब देंहटाएंसमय-परिस्थिति की ईमानदार व्यथा.
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने, कुछ कहीं खटकने लगता है कृत्रिमता में।
जवाब देंहटाएंकविता का कथ्य अच्छा है। बेहतर इसे अनावश्यक विस्तार से बचाएं।
जवाब देंहटाएंshukriya rajesh ji... is kavita ko sampadit kar den to aabhar rahega
हटाएंबहुत खूब कहा है आपने ... आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए ।
जवाब देंहटाएंkitni baar kahun aap ki rachnaayein sabse alag hai aap wo dekh lete hai jo ham dekhkar bhi andekhaa kar jaate hai
जवाब देंहटाएंमनोज कुमार ने आपकी पोस्ट " हीरालाल हलवाई : मत बनना एक ब्रांड " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंअरुण जी, आपकी यह कविता धारदार है, नुकीली है, पैनी है। हो भी क्यों नहीं। किसी दर्द पीड़ित मन में ऐसी कविता और ऐसे भाव उठना स्वाभाविक ही है।
मुझे धर्मवीर भारती की पंक्तिया याद आ रही हैं --
हम सबके मन में गहरा उतर गया है युग
अश्वत्थामा है, संजय है, अंधियारा है
है दासवृत्ति उन दोनों प्रहरियों की
अंधा संशय है लज्जाजनक पराजय है।
हीरालाल हलवाई
जवाब देंहटाएंब्रांड होने की प्रक्रिया में
आने लगी है
तुम्हारी दुकान से
प्लास्टिक की विषैली गंध !
बहुत सुन्दर अरुण जी........हीरालाल नाम बढ़िया चुना है आपने :-)
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
हटाएंशुक्रवारीय चर्चा मंच पर
charchamanch.blogspot.com
वाकई कुछ भी ओरिजनल नहीं रह गया.
जवाब देंहटाएंहीरालाल हलवाई
हटाएंब्रांड होने की प्रक्रिया में
आने लगी है
तुम्हारी दुकान से
प्लास्टिक की विषैली गंध !
Sach....aisabhee hota hai!
बहुत बढ़िया लिखा है |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबाजारवाद पर कही अच्छी प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंहीरालाल हलवाई
जवाब देंहटाएंब्रांड होने की प्रक्रिया में
आने लगी है
तुम्हारी दुकान से
प्लास्टिक की विषैली गंध
उपभोक्ता एवं क्रेता के बीच बाजारवाद एवं "ब्रांड" ने असंतुलन की भूमध्य रेखा को खींच दिया है । कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखन ने मुझे थामा इसलिए मैं लेखनी को थाम सकी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
और अपने ही ब्रांड के
जवाब देंहटाएंनिदेशक बोर्ड में
नहीं रहेगा तुम्हे
निर्णय लेने का कोई अधिकार
धीरे धीरे मिठाइयों को
बेदखल होना होगा
आकर्षक रैपर वाले
चाकलेटों से
bahut he achhi rachna, aaj ke daur par satik vyang..
shubhkamnayen
उम्दा कविता |
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर और स्पष्ट भाव बहुत ही सुन्दर और सार्थक कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव पूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंइस कविता पर तो पहले ही एक ब्रांड चिपका हुआ है "अरुण चंद्र रॉय"... रही बात हीरालाल की.. तो जैसे नीम, बासमती वैसे हीरालाल हलवाई!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे!!
हीरालाल हलवाई
जवाब देंहटाएंब्रांड होने की प्रक्रिया में
आने लगी है
तुम्हारी दुकान से
प्लास्टिक की विषैली गंध !
....बढ़ते हुए बाज़ारवाद के पैरों कुचलती हमारी पहचान पर बहुत सशक्त कटाक्ष...
कविता पढके तो मुंह में पानी आ रहा है. हीरा लाल की जय हो.
जवाब देंहटाएंबदलाव तो होना ही है.. हो सकता है कुछ बेहतर भी हो..
जवाब देंहटाएंपर हाँ यह तो सत्य है कि फिर वो अपनापन नहीं रह जाएगा मिठाई के स्वाद में..
आभार
प्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें..
बढ़िया...
जवाब देंहटाएंकाश हीरालाल इतनी दूर की बात ताड़ पाता...
बहुत खूब!!
वाह ... भविष्य की भयानक मगर सच तस्वीर दिखा रही है आपकी अरुण अरुण जी ... सामयिक और प्रभावी ...
जवाब देंहटाएंsahi kaha sir ji.
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