हुज़ूर
कहाँ है हिन्दुस्तान की राजधानी !
क्या कहा दिल्ली !
वही दिल्ली जहाँ देश भर से बिजली काट काट कर
पहुचाई जाती है रौशनी
वही दिल्ली न
जहाँ तरह तरह के भवन हैं
पूर्णतः वातानुकूलित
करने को हिंदुस्तान और हिन्दुस्तानियों की सेवा
हाँ उन्ही भवनो की खिड़कियों पर लगे हैं न शीशे
जहाँ हिन्दुस्तान की आवाज़ न पहुचती है
हुज़ूर यह नहीं हो सकती हिन्दुस्तान की राजधानी
राजपथ पर चलते हुए जहाँ
हीनता से ग्रस्त हो जाता है हिंदुस्तान
लोहे के बड़े बड़े सलाखों से बने दरवाजों के उस ओर राष्ट्रपति
अपने राष्ट्रपति नहीं लगते
सुना है राजधानी में है कोई संसद
जिसकी भव्यता से हमारी झोपड़ी की गरीबी और गहरी हो जाती है
ऐसी भव्य नहीं हो सकती हिन्दुस्तान की राजधानी
यह वही दिल्ली हैं न
जहाँ प्रधानमंत्री अक्सर गुजरते हैं
और खाली कर दी जाती है सड़के
ठेल ठाल कर उनके मार्ग से किनारे कर दिए जाते हैं हम
कितना दूर है मेरा गाँव , देहात , क़स्बा
क्या इतनी दूर हो सकता है हिंदुस्तान की राजधानी !
वाह...।
जवाब देंहटाएंदिल्ली तो दिलवालों की है।
सब झेल लेंगे...दिल से।
वाह...बहुत खूबसूरत !
जवाब देंहटाएंआपकी ऐसी कवितायें प्रभावित करती हैं अरुण जी!
सामंती क़ानून जब तक रहेंगे ... राजधानी अपनी नहीं रहेगी ...
जवाब देंहटाएंगहरी रचना ...