पेड़
कटते हैं
बनते हैं
खिड़की, किवाड़
कुर्सी पलंग
और धर्मशास्त्र रखने के लिए
तख्त
दंगा नहीं करते
पेड़ कभी
कि रोपा था उसे किसी और धर्म के व्यक्ति ने
और रखा जा रहा है
किसी और धर्म का शास्त्र
फिर भी पेड़ नहीं छोड़ता
अपना धर्म !
सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आये और फॉलोवर बनकर अपने सुझाव दे !
बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंसच्ची सीख
जवाब देंहटाएंगहरा मर्म
किंतु मनुज को
नहीं शर्म
इंसान समझे तब न !
जवाब देंहटाएं...... सत्य की बेहद करीब है ..........
जवाब देंहटाएंपेड़ का एक ही धर्म है सेवा ,मानव धर्म का गलत अर्थ लगा लिया है !
जवाब देंहटाएं: शम्भू -निशम्भु बध --भाग १
बहुत ही प्रभावी ... कम शब्दों में गहरी दूर की बात ....
जवाब देंहटाएंसत्य.. पेड़ अपना धर्म नहीं छोड़ता कभी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सोच ...सच ही तो है
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