मंगलवार, 13 जून 2017

किसान की व्यथा




खाली मेरी थाली 
भरा है तेरा पेट 
अन्न उगाऊं मैं 
खाऊन मैं सल्फेट 


मिटटी पानी से लड़ूँ 
 उसमे रोपूँ बीज 
पसीना मेरा गंधाये
महके तेरी कमीज़ 


खूब जो उगे मेरी फसल 
गिर जाए इसका मोल 
कोल्डस्टोरेज में भरकर 
पाओ तुम दाम अनमोल 


जो व्यापारी बन गए 
उनके खुले हैं भाग्य 
जो बैठे धरती पकड़ 
रोये अपने दुर्भाग्य 


गेहूं  न फैक्ट्री उपजे 
कंप्यूटर न बनाए धान 
जिसदिन देश ये समझे 
बढे किसान का मान 

3 टिप्‍पणियां: