सोमवार, 26 जून 2017

कविता की पहली हार




आज जो चौकीदारी करता है 
मेरे मोहल्ले में 
वह जो चौक पर लगाता है 
पंक्चर की दूकान 
वही जो शाम को लगा जायेगा 
भुट्टे का खोमचा 
उबले हुए अंडे थी ठेली 
सब्ज़ियों की दूकान 
वह हमारी कविताओं में है , 

हाँ, सही जानते हैं आप 
उसे पढ़नी नहीं आती 
पढ़नी भी आती है तो 
कविता नहीं पढता वह 
किताबे देने पर कहता है 
सुना दो बाबूजी 

मैं कहता हूँ, 
कवि लिखता है 
सुनाता नहीं है 
वह हँसता है और गुनगुनाने लगता है 
किसी फिल्म का प्रसिद्द गीत
पहली बार कविता ऐसे ही हारी होगी 
जब किसी कवि ने सुनाने से मना किया होगा कविता
किसी कम पढ़े-लिखे को 

आओ , बैठो 
सुनाता हूँ मैं एक कविता।  

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत जबरदस्त ... प्रभावी और कितनी सच्ची कविता ...
    आप अनेकों बार चौंकाते हैं कुछ ही शब्दों में ... अति उत्तम ...

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रभावी और कितनी सच्ची कविता .

    जवाब देंहटाएं
  3. अर्थपूर्ण ... रचना का भाव हक़ीकत लिए है

    जवाब देंहटाएं
  4. क्या कहूँ शब्द नहीं हैं.....सच्चाई और हक़ीकत हैं हर लब्ज़

    जवाब देंहटाएं