ईश्वर ने
पत्थर बनाये और उनमे भर दिया दृढ़ता
फिर उसने बनाये नदियां और उनमे भर दी चंचलता
ईश्वर ने बनाया वृक्ष और उनके भीतर भर दिया हरापन
उसी ईश्वर ने बनाया मिटटी और धीरज भर दिया उसके कण कण में
ईश्वर ने ही बनाया अग्नि और उसमे भरा तेज़
फिर ईश्वर ने पत्थर से ली उधार दृढ़ता,
नदी से चंचलता,
वृक्ष से हरापन,
मिटटी से धीरज
और अग्नि से तेज़
नदी से चंचलता,
वृक्ष से हरापन,
मिटटी से धीरज
और अग्नि से तेज़
और बनाया स्त्री
उसके रोम रोम में भर दिया करुणा और प्रेम
फिर ईश्वर तथास्तु कहकर चला गया पृथ्वी से
स्त्री के बाद कुछ और शेष नहीं सृष्टि में !
और पुरुष में कुछ भी भरना उसे याद नहीं रहा :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
मात्र स्त्री ही नहीं मानव मात्र में ..
जवाब देंहटाएं