सैकड़ो बार कहे जाने के बाद भी
हम दुहराते हैं कि
जीवन शून्य है
और आश्वस्त होते हैं
माया मोह के बंधन से दूर हैं हम
जितनी बार दुहराते हैं शून्य
शून्य का धागा
मनोकामना के धागे की तरह
मजबूती से लिपट जाता है
हमारे चारो ओर
कुछ आशाओं के संग
शून्य का यह डोर
चलता रहता है हमारे साथ
साँसों की डोर के सामानांतर
और कहता है शून्य नहीं है जीवन
उत्कृष्ट। कविता में दार्शनिकता का पर्याप्त पुट है। बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छा लग रहा है लगातार लिखते हुऐ देखते आपको।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनमस्ते, आपकी यह रचना गुरुवार 22 -06 -2017 को "पाँच लिंकों का आनंद " http://halchalwith5links.blogspot.in में लिंक की गयी है। चर्चा के लिए आप भी आइयेगा ,आप सादर आमंत्रित हैं।
जवाब देंहटाएंजीवन शून्य है....बहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति...
निशब्द करती रचना
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