समय
तुम कब रुके थे आखिरी बार
याद है क्या तुम्हे
विश्राम का कोई एक पल
समय क्या तुम रुके थे
जब सीता के लिए फटी थी पृथ्वी
या फिर राम ने ली थी जल समाधि
द्रौपदी के चीरहरण पर
अभिमन्यु की मृत्यु पर ही।
समाधिस्थ हो रहे बुद्ध को देख भी
समय तुम नहीं ठहरे
न ही ठहरे तुम नालंदा को जलते देख
कलिंग के भीषण नरसंहार को देख भी
तुम्हे वितृष्णा नहीं हुई
रुके नहीं तुम, समय
हिरोशिमा और नागाशाकी में
आधुनिक विज्ञानं के चमत्कारिक नरसंहार के
बने तुम साक्षी
समय, तुम क्यों नहीं करते विश्राम !
तुम रुक गए तो क्या होगा अधिक से अधिक
गहन अन्धकार की सुबह नहीं होगी
किन्तु क्या तुमने सोचा है कितना अन्धकार है
इस रौशनी के पीछे !
समय, तुम्हे विश्राम की आवश्यकता है, जाओ, ठहर जाओ।
अदभुत रचना
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-06-2017) को
जवाब देंहटाएंरविकर यदि छोटा दिखे, नहीं दूर से घूर; चर्चामंच 2644
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
वाह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंऐसी रचनाएं सिर्फ आपकी ही कलम से निकल सकती है।