एक दिन कुछ ऐसा होगा
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
जब सब सागर
सूख जायेंगे
नदियाँ मिट जायेंगी
मछलियों की हड्डियां
अवशेष बचेंगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
मनुष्य रहे न रहे
मनुष्यता उसमे रहे न रहे
रहें न रहे दिन
रहें न रहे रात
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
हां !
ध्वनियों से फिर जन्म लेगी
कोई न कोई पृथ्वी
अन्तरिक्ष में
कहीं न कहीं !
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
जब सब सागर
सूख जायेंगे
नदियाँ मिट जायेंगी
मछलियों की हड्डियां
अवशेष बचेंगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
मनुष्य रहे न रहे
मनुष्यता उसमे रहे न रहे
रहें न रहे दिन
रहें न रहे रात
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
हां !
ध्वनियों से फिर जन्म लेगी
कोई न कोई पृथ्वी
अन्तरिक्ष में
कहीं न कहीं !