यह श्रृष्टि
जो कल तक
छोटी -सिमटी सी लगती थी
आज अचानक लग रही है
बहुत विस्तृत
मेरी सोच और
संभावनाओं से परे
प्रकृति स्वयं
एक अंग मात्र है
श्रृष्टि की संकल्पना का
सोच रहा हूँ मैं
किसी दार्शनिक की भांति जो
कल तक तुम्हारी आंचल को
समझता था ब्रह्माण्ड
इस प्रकृति में
क्यों हूँ मैं
क्या है मेरा अस्तित्व
क्या है मेरे होने का रहस्य
कौंधते हैं ये प्रश्न
स्वयं से करते हुए वार्तालाप
श्रृष्टि के ये मूल प्रश्न
डराते हैं मुझे
भयभीत हो
मैं भागता हूँ
रास्ता नहीं मिलता है मुझे
मिलता है बंद दरवाज़े
मैं देता हूँ दस्तक
भीतर से नहीं आती है
कोई आवाज़
गहन चुप्पी के बीच
मेरा ही प्रश्न लौट आता है
अब इन प्रश्नों का शोर बढ़ जाता है
और मैं हताश हो
बढ़ जाता हूं
सबसे ऊँचे शिलाखंड की ओर
जहाँ से लौटना
नहीं है कोई सम्भावना
क्यों हूँ मैं (?)
शेष रह जाता है
इस प्रश्न का उत्तर
इसी बीच
एक हवा का झोंका लेकर आता है
एक जानी पहचानी गंध
मैं लौट आता हूं इसी दुनिया में
बिना किसी और प्रश्न के.
जो कल तक
छोटी -सिमटी सी लगती थी
आज अचानक लग रही है
बहुत विस्तृत
मेरी सोच और
संभावनाओं से परे
प्रकृति स्वयं
एक अंग मात्र है
श्रृष्टि की संकल्पना का
सोच रहा हूँ मैं
किसी दार्शनिक की भांति जो
कल तक तुम्हारी आंचल को
समझता था ब्रह्माण्ड
इस प्रकृति में
क्यों हूँ मैं
क्या है मेरा अस्तित्व
क्या है मेरे होने का रहस्य
कौंधते हैं ये प्रश्न
स्वयं से करते हुए वार्तालाप
श्रृष्टि के ये मूल प्रश्न
डराते हैं मुझे
भयभीत हो
मैं भागता हूँ
रास्ता नहीं मिलता है मुझे
मिलता है बंद दरवाज़े
मैं देता हूँ दस्तक
भीतर से नहीं आती है
कोई आवाज़
गहन चुप्पी के बीच
मेरा ही प्रश्न लौट आता है
अब इन प्रश्नों का शोर बढ़ जाता है
और मैं हताश हो
बढ़ जाता हूं
सबसे ऊँचे शिलाखंड की ओर
जहाँ से लौटना
नहीं है कोई सम्भावना
क्यों हूँ मैं (?)
शेष रह जाता है
इस प्रश्न का उत्तर
इसी बीच
एक हवा का झोंका लेकर आता है
एक जानी पहचानी गंध
मैं लौट आता हूं इसी दुनिया में
बिना किसी और प्रश्न के.