सोमवार, 20 जुलाई 2020

सब आम आदमी के लिए है

बाढ़ है
सुखार है
रोग है
सब आम आदमी के लिए है

बेकारी है
बेरोज़गारी है
वेतन में कटौती है
सब आम आदमी के लिए है

गलियों में पानी भरा है
अस्पताल का बिस्तर भरा है
स्कूल की सीट भरी है
सब आम आदमी के लिए  है 

भाषण है
कुपोषण है
घट-तौली राशन है
सब आम आदमी के लिए है

मंदिर है
मस्जिद है
दंगा है 
सब आम आदमी के लिए है .

अनाज उगाने की जिम्मेदारी है
कारखाना चलाने की जिम्मेदारी है
सेवा करने की लाचारी है
सब आम आदमी के लिए है .

जो वोट बैंक है
जो नेताओं का खिलौना है
जो कुचले सपनों का बिछौना है 
सब आम आदमी है , सब आम आदमी है .




मंगलवार, 14 जुलाई 2020

अंक

1.
बच्चे अब
अपने मृदुल मुस्कान
व्यवहार कुशलता
और सामाजिक सरोकारों से नहीं बल्कि
मापे जाते हैं
अंकों और अंकपत्रों से

2.
बच्चे अब
मानव नहीं  रह गए हैं
बदल गए हैं
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस ) के औजार
या फिर कहिये हथियार में .

3.
घरों में बदल गई है परिपाटी
दीवारों पर संजाने के चित्र
वह टांगी जाती हैं
तरह तरह के मेडल, प्रमाणपत्र और ट्राफियाँ

4.
अंत में
वही बच्चे बुजुर्गों को पार कराते हैं सड़क
पकड़ लेते हैं पड़ोसियों का भारी थैला
आते जाते करते हैं अभिवादन
जिनके अंकपत्र नहीं होते औरों की तरह
वजनदार और चमकदार !

मंगलवार, 7 जुलाई 2020

आत्महत्या : कुछ कवितायेँ


1.

 दौर
आत्महत्याओं का है
और हो भी क्यों न
जब सबने अर्थ और साधन को
बना ली है जीवन की धुरी
तो अर्थव्यवस्था के तनिक रुकने
साधनों के तनिक अभाव से
आत्महत्या को
स्वाभाविक ही कहा जाना चाहिए .

2.

पहली  कविता के तर्क पर तो
दुनिया के तमाम
साधनहीन, सुविधाहीन लोगों को
हक़ ही नहीं है जीने का
फिर भी वे जीते हैं, लड़ते हैं
आत्महत्या नहीं करते
तो उन्हें क्या कहा जाय !

3.
इनदिनों किसान बो रहे हैं धान
तमाम आशंकाओं के बीच वे बोते हैं धान कि
हो सकता है समय पर बारिश न हो
बारिश हो और इतनी अधिक हो कि धान हो ही नहीं
धान पके और घर पहुचे यह भी सुनिश्चित नहीं होता
फिर भी वे बो रहे हैं धान
क्योंकि धान का बोना केवल धान का बोना नहीं है
बल्कि यह है एक जिम्मेदारी किसी के हिस्से की भूख को मिटाने की .
जो समझते हैं जिम्मेदारी
वे रोपने हैं अपने भीतर आशा का बीज
लगाते हैं अपने आसपास रौशनी के पौधे
वे नहीं करते आत्महत्या .

4.
कई बार आत्महत्या
आत्महत्या नहीं होती
बल्कि हत्या होती है
एक सुविचारित, सुनियोजित
जिसकी पृष्ठभूमि ,
जिसके कारणों और प्रयोजनों से रहकर
तटस्थ और अनिभिज्ञ
हम  करते रहते हैं विमर्श घटना पर
जैसे लाठी से पीटा जाता है पानी .

5.
आत्महत्या और आत्महत्या में
होता है फर्क
उसकी आत्महत्या होती है बड़ी
जिसमे होती है सनसनी
गृहणियों, किसानों ,
अभावग्रस्तों और अकाल पीड़ितों की आत्महत्याओं पर
नहीं होती चर्चा क्योंकि
इस चर्चा में अधिक है ,पीड़ा और जोखिम
सत्ता को नहीं होता रुचिकर भी .