गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

गृहस्थी : कुछ क्षणिकाएं




१,
आटा 
थोडा गीला
फिर भी गीली
तुम्हारी हंसी

२.
मैं 
तुम 
बच्चे , 
गीले बिस्तर की गंध 
कितनी  सुगंध 

३.
न कभी 
गुलाब 
न कोई 
गीत 
फिर भी जीवन में 
कितना संगीत 

४.
सूखी रोटी
नून 
और तेरा साथ , 
आह ! कितना स्वाद 

५.
तीज 
त्यौहार पर 
तेरा उपवास 
गरीबी को छुपाने का 
अदभुत प्रयास