बुधवार, 23 जून 2021

मायके लौटी स्त्री


मायके लौटी स्त्री

फिर से बच्ची बन जाती है

लौट जाती है वह 

गुड़ियों के खेल में 

दो चोटियों और 

उनमें लगे लाल रिबन के फूल में


वह उचक उचक कर दौड़ती है

जैसे पैरों में लग गए हो पर

 घर के दीवारों को छू कर 

अपने अस्तित्व का करती है एहसास

मायके लौटी स्त्री। 


मायके लौटी स्त्री

वह सब खा लेना चाहती है

जिनका स्वाद भूल चुकी थी

जीवन की आपाधापी में 

घूम आती है अड़ोस पड़ोस

ढूंढ आती है

पुराने लोग, सखी सहेली

अनायास ही मुस्कुरा उठती है

मायके लौटी स्त्री। 


मायके लौटी स्त्री

दरअसल मायके नहीं आती

बल्कि समय का पहिए को रोककर वह

अपने अतीत को जी लेती है

फिर से एक बार। 


मायके लौटी स्त्री

भूल जाती है 

राग द्वेष

दुख सुख

क्लेश कांत

पानी हो जाती है

किसी नदी की । 


हे ईश्वर ! 

छीन लेना 

फूलों से रंग और गंध

लेकिन मत छीनना 

किसी स्त्री से उसका मायका।



मंगलवार, 15 जून 2021

प्रार्थनाएं

 अरुण चन्द्र राय की कविता - प्रार्थनाएं 

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आदरणीय मां

उमर हो ही गई है तुम्हारी 

लेकिन अभी इस भीषण महामारी के दौर में 

न तो बीमार होना , न ही मरना 

अन्यथा मां 

न ही मिल पाएगा डॉक्टर, न ही अस्पताल 

न ही मिल पाएगी शमशान में स्थान 

मां अभी किसी तरह रुकना तुम 

मत मरना तुम 

इस महामारी के दौरान। 


बाबूजी 

वैसे तो आपने देख ली दुनियां 

जानता हूँ कि जाना तो होता ही है एक सबको 

फिर भी कहूंगा कि हो सके तो 

मृत्यु को टालना महामारी के बीत जाने तक 

क्योंकि देख ही रहें हैं आप कि 

कितनी मुश्किल है अभी अस्पतालों में 

न मिल रही है दवाइयां न ही प्राणवायु 

और चिता के लकड़ियां भी हो चली है महंगी 

इसलिए बाबूजी अभी रुकियेगा हमारे साथ , हमारे बीच ।  . 


प्रिय अनुज 

इस बीच यदि मैं पड जाऊं बीमार 

हो जाए साँसों को ऑक्सीजन की कमी 

न मिले कोई सरकारी अस्पताल 

तो बस ध्यान रखना हमारे बच्चों का 

भाव में लुटने से बचा लेना उनकी जमा पूँजी

मेरे अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं करना कोई विशेष यत्न 

निपटा देना किसी तरह बस 

हाँ लिख कर रख दिया हूँ 

बच्चों के स्कूल के लिए भावपूर्ण चिट्ठी 

ताकि माफ़ हो जाए उनकी फीस मेरे नहीं रहने के बाद

यदि वो न हो सके तो उन्हें दाखिला जरुर दिला देना 

घर के पीछे सरकारी स्कूल में 

वैसे समझा दिया है मैंने कि पढ़ाई सिमटा हुआ है 

किताब के उन दो चार सौ पन्नों में 

और वे समझ भी गए हैं ।


प्रिय जीवन संगिनी 

कुछ नहीं मालूम कब कौन है कब नहीं 

आखिर महामारी है यह

फिर भी यदि किसी को जाना पड़ा तो 

वादा करो कि निभाएंगे दुसरे के सपनों को हकीकत बनाने का 

आंसू बिलकुल भी जाया नहीं करेंगे 

न ही अवसाद को घर करने देंगे एक दूसरे के ह्रदय में 

कहो न करोगी ऐसा ही !








शनिवार, 12 जून 2021

वृक्ष

हर दिन पर्यावरण दिवस है . सम्पूर्ण प्रकृति से प्रेम करने का दिवस . पढ़िए अरुण चन्द्र रॉय की कविता वृक्ष 
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जिन्होंने पिता को नहीं देखा 
वे किसी वृक्ष के तने से लगकर गले 
महसूस कर सकते हैं 
पिता को . 

जिन्होंने मां के आँचल का सुकून 
नहीं किया महसूस कभी 
वे किसी वृक्ष के घने छाये से लिपट कर 
समझ सकते हैं मां को . 

फल फूलों से लकदक वृक्ष की शाखाओं से 
जाना जा सकता है किसी सच्चे दोस्त का 
निःस्वार्थ प्रेम . 

कटकर किसी चूल्हे का इंधन हो जाना 
वृक्ष का दधीचि हो जाना होता है 
कहाँ कोई है वृक्ष सा कोई संत !