बुधवार, 24 जुलाई 2019

मैं शोक में हूँ

इस कायनात में 
हर पल कितने ही लोग मरते हैं 
जो मरते हैं 
होते हैं किसी के पिता 
होते हैं किसी की मां 
होते हैं किसी के भाई/बहिन
किसी का बेटा भी हो सकता है वह 
या बेटी ही 
या वही किसी और ओहदे/पद/रिश्ते का हो सकता है 
लेकिन जो मरता है 
होता है कोई न कोई 
यदि वह अनाम/अनजान भी हुआ तो क्या 
होता है वह मनुष्य ही 
फिर किसका शोक मनाया जाय 
किसका शोक न मनाया जाय 
यह तय करना मनुष्यता के बोध को कम करना है 
और जन्म मृत्यु के बंधन से परे होना ही 
प्राप्त करना है बुद्धत्व 

यही कारण है कि 
मैं हमेशा होता हूँ शोक में 
किसी के जीवित रहते हुए भी 
किसी के मृत्यु को प्राप्त करते हुए 
क्योंकि हर पल मर रही है मनुष्यता  !


सोमवार, 15 जुलाई 2019

कैसे हैं सरकार ?

कैसे हैं सरकार
आपको नमस्कार !

टूट गया तटबंध 
डूब गए हैं गाँव 
बह गए हैं घर 
मेघ ही अब छाँव 
भूख से मर रहे बच्चे 
हम गा रहे मल्हार 
कैसे हैं सरकार 
आपको नमस्कार !


साल दर साल
कहानी है एक 
किन्तु आपके पास 
बहाने अनेक 
जीवन की इस विपदा का 
होगा कोई जिम्मेदार 
कैसे हैं सरकार 
आपको नमस्कार 

सूखा भी हम भोगे 
हम ही भोगे बाढ़ 
मौसम की मनमर्जी 
सूखा रहे अषाढ़
दोनों ही स्थति में 
सूना रहते खेत पथार
कैसे हैं सरकार 
आपको नमस्कार !

अपनी स्थिति का 
मेनिफेस्टो में नहीं स्थान 
संसद में नहीं गूंजती 
जनता का विलाप-गान 
चुनाव तक हमसे नाता 
फिर क्या हमारी दरकार 
कैसे हैं सरकार 
आपको नमस्कार !




रविवार, 14 जुलाई 2019

पत्थर : दस क्षणिकाएं



1.

जो संवेदनाएं नहीं होती 
पत्थरों में 
चिंगारी नहीं फूटी होती 
इनके घर्षण से 
न ही जन्म लेती आग।  

2. 

जो संवेदनाएं नहीं होतीं 
पत्थरों में 
कहाँ पिसी होती गेंहूं 
पकी होती रोटी 

3.

पत्थरों ने 
अपनी साँसे रोक कर 
सहा जो नहीं होता 
छेनियों की धार 
और हथौरों की चोट 
गढ़े नहीं गए होते बुद्ध 

4.

नदी की धाराओं से 
करके प्रेम 
कितने सुन्दर हो जाते हैं 
पत्थर 

5.

अपनी सपाट और काली पीठों पर 
पत्थरों ने 
लिखने दिया आखर 
जिनसे फूटी क्रांतियाँ 

6. 

रास्ते में जो पत्थर 
पैरों से टकराते हैं 
वे गति तो कम करते हैं 
लेकिन मंजिल के लिए 
करते हैं सतर्क भी 


7. 

यूं ही कोई 
नहीं बन जाता है 
पत्थर 
इसके लिए पृथ्वी के गर्भ में 
असीम ताप और दाब में 
रहना पड़ता है 
युगों युगों तक 

8.

पत्थर 
जब रंगीन हो जाते हैं 
बाज़ार के हिस्से हो जाते हैं 
और वे मुस्कुराते हैं 
हमारी बेबकूफियों पर 
नादानियों पर 

9.

पत्थर 
पिघल भी जाते हैं 
जब किसी मजदूर की 
गाँठ वाली हथेलियाँ 
छू जाती हैं उन्हें 


10.

पत्थर को
पत्थर कहने की भूल करना 
वास्तव में मानुष की बड़ी भूल है 
वे कभी भी बदल सकते हैं 
ईश्वर में।  




मंगलवार, 9 जुलाई 2019

देश के भीतर




मैं पैदा हुआ बिहार में 
मेरे पैदा होते ही 
पिता को जाना पड़ा कमाने झारखंड 
पीछे पीछे मैं भी पंहुचा 
मैं जब बड़ा हुआ 
आ गया झारखंड एक्सप्रेस में बैठ कर दिल्ली 
दिल्ली में पकड़ी नौकरी 
और दिल्ली की सीमा के बाहर उत्तर प्रदेश में 
बनाया ठिकाना 

अब न बिहार में वह छूटा हुआ गाँव मेरा है 
न कोयला खादानो के बीच वे कालोनियां 
दिल्ली तो होती है सरकारों की 
और दिल्ली की सीमा पर खड़े उत्तरप्रदेश भी 
कहाँ मानता है अपना 

देश के भीतर ही मैं हूँ विस्थापित 
शांतिकाल का यह विस्थापन कम पीड़ादायक नहीं होता 

सोमवार, 1 जुलाई 2019

कैसा है आपके घुटने का दर्द ?

कैसा है आपके घुटने का दर्द ?
इधर तो बादल नहीं हैं /लेकिन क्या उधर 
बुझ रही है मिटटी की प्यास ?
इधर तो कुत्ते रो रहे हैं प्यास से 
उधर तो गायें गर्भवती हुई होंगी ?
गायें अक्सर बारिश के मौसम में गर्भवती होती हैं 
और बारिश में गर्भवती होती है धरती भी 
ताल तलैया सब लबालब भर जाते हैं 
लेकिन इधर तो सब कल्पना है 
क्या आपके तरफ स्थिति भिन्न है ?
प्रार्थना है कि  आपके तरफ ऐसा सूखा न हो 
न मौसम में , न विचार में 

जब दिमाग पर अधिक बोझ आ जाए 
तो किसी को घुटने का दर्द पूछना निरा मूर्खतापूर्ण है 
किन्तु क्या आप जानते हैं कि दुनिया में मूर्ख लोग न हो 
तो नहीं होगी बारिश /नहीं बोये जाएंगे धान 
सब्ज़ियां नहीं उगेंगी /टमाटर तो बिलकुल नहीं 
और नारियल का पेड़ तो कोई लगाएगा ही नहीं 
हाँ, प्यार भी नहीं करेगा कोई।  

अब बताइयेगा कैसा है आपके घुटने का दर्द 
जानता हूँ आपके दिमाग पर इनदिनों 
बहुत बोझ है अरमानों का /दवाब बहुत है बाजार का।