यह राजपथ
प्रगति पथ
उन्नति पथ
स्वाभिमान पथ
आत्मसम्मान पथ
यह राजपथ
विजय पथ
विकास पथ
अखंडता पथ
संप्रभुता पथ
यह राजपथ
आरोह पथ
अविराम पथ
संस्कार पथ
संस्कृति पथ
ज्ञान पथ
विज्ञानं पथ
यह राजपथ
नहीं स्थान यहाँ
जातिगत विद्वेष का
नहीं स्थान यहाँ
धार्मिक अविश्वाश का
यह पथ है
प्राण आहुति विशेष का
यह पथ है
स्वयं के उत्सर्ग का
इस पथ पर चलने का निश्चय करें
गणतंत्र को मजबूत करने का संकल्प लें
यह राजपथ है
जन जन का पथ !
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
आग
आग
जलाती ही नहीं
पकातीभी है.
आग
नस्त नहीं करता
सृजन भी करताहै
पसीनों की
आग से
लहलहाते
हैं खेत
ज्ञान की आग से
रोशन होती हैं
पीदियाँ
आग
जिजीविषा है
जिज्ञासा है
जूनून है
जरुरी है
आग
जीवन में
रिश्तों में
जो होगी
अपनों के बीच
आग
कुछ नया जन्म लेगा
अवश्य ही !
जलाती ही नहीं
पकातीभी है.
आग
नस्त नहीं करता
सृजन भी करताहै
पसीनों की
आग से
लहलहाते
हैं खेत
ज्ञान की आग से
रोशन होती हैं
पीदियाँ
आग
जिजीविषा है
जिज्ञासा है
जूनून है
जरुरी है
आग
जीवन में
रिश्तों में
जो होगी
अपनों के बीच
आग
कुछ नया जन्म लेगा
अवश्य ही !
बुधवार, 20 जनवरी 2010
दुनिया बहुत छोटी है
दुनिया
बहुत छोटी है
बहुत ही छोटी
पल भर में
सात समंदर पार बैठे
किसी बाला से
चुटकी बजाते ही चैट हो जाती है
पलक झपकते ही
सामने आ जाता है
बाजार का भाव
नए प्रोडक्ट्स
ग्लेमर की चकाचौंध दुनिया
ब्रेकिंग न्यूज़
हॉट ट्रेंड्स
और
ढेर सारा पोर्न
सबके लिए।
दुनिया
बहुत छोटी है
बहुत ही छोटी
घर के
इस्सी कमरे में
रहते हैं बाबूजी, भाई
और परोस में मामाजी भी...
जिनसे महीनो हो
गए मिले
और
पता नहीं है
माँ के दिल का भाव
बाबूजी का ब्लड प्रेशर
बेटे के किताबों का बोझ !
दुनिया
बहुत छोटी है
बहुत ही छोटी (!)
बहुत छोटी है
बहुत ही छोटी
पल भर में
सात समंदर पार बैठे
किसी बाला से
चुटकी बजाते ही चैट हो जाती है
पलक झपकते ही
सामने आ जाता है
बाजार का भाव
नए प्रोडक्ट्स
ग्लेमर की चकाचौंध दुनिया
ब्रेकिंग न्यूज़
हॉट ट्रेंड्स
और
ढेर सारा पोर्न
सबके लिए।
दुनिया
बहुत छोटी है
बहुत ही छोटी
घर के
इस्सी कमरे में
रहते हैं बाबूजी, भाई
और परोस में मामाजी भी...
जिनसे महीनो हो
गए मिले
और
पता नहीं है
माँ के दिल का भाव
बाबूजी का ब्लड प्रेशर
बेटे के किताबों का बोझ !
दुनिया
बहुत छोटी है
बहुत ही छोटी (!)
गुल्लक
बच्चों को
अच्छा लगता है
गुल्लक
क्योंकि
अच्छा लगता है
दादा की चवन्नी
दादी की अठन्नी
काका का सिक्का
बच्चों को
अच्छा लगता है
गुल्लक
क्योंकि
अच्छा लगता है
छोटी छोटी बचत से
'सपनो को सच करने' का सपना
माँ के लिए इक अदद साड़ी लाने का सपना
पिता के लिए चश्मे का सपना
गुल्लक के भर जाने के बाद...
अब गुल्लक
नहीं रहे
और नहीं रहे
छोटी छोटी बचत से
पूरे होने वाले सपने !
अच्छा लगता है
गुल्लक
क्योंकि
अच्छा लगता है
दादा की चवन्नी
दादी की अठन्नी
काका का सिक्का
बच्चों को
अच्छा लगता है
गुल्लक
क्योंकि
अच्छा लगता है
छोटी छोटी बचत से
'सपनो को सच करने' का सपना
माँ के लिए इक अदद साड़ी लाने का सपना
पिता के लिए चश्मे का सपना
गुल्लक के भर जाने के बाद...
अब गुल्लक
नहीं रहे
और नहीं रहे
छोटी छोटी बचत से
पूरे होने वाले सपने !
बाबूजी के खामोश होने के एहसास से
अचानक लगा
फिसल गया हूँ
बाबूजी के कन्धों से
अचानक लगा
छूट गई हैं उँगलियाँ
बाबूजी के हाथों से
अचानक लगा
आज दरवाजे पर
कौन खड़ा होगा
लम्बी सी बेंत लिए
देर से घर लौटने पर
आज
मैं सुबह
समय पर जाग गया
बाहर गली में देर तक नहीं खेला
तितलियों के पंख नहीं तोड़े
बस बाबूजी के खामोश होने के एहसास से !
फिसल गया हूँ
बाबूजी के कन्धों से
अचानक लगा
छूट गई हैं उँगलियाँ
बाबूजी के हाथों से
अचानक लगा
आज दरवाजे पर
कौन खड़ा होगा
लम्बी सी बेंत लिए
देर से घर लौटने पर
आज
मैं सुबह
समय पर जाग गया
बाहर गली में देर तक नहीं खेला
तितलियों के पंख नहीं तोड़े
बस बाबूजी के खामोश होने के एहसास से !
मंगलवार, 19 जनवरी 2010
कुछ छोटी कवितायें
१
खो कर
पाने कि तमन्ना लिए
खुश हैं हम
रेत भर कर मुट्ठी में
सपने संजो रहे !
२
रेत घडी
जिसने भी बनाई हो
वैज्ञानिक से ज्यादा
आशिक रहा होगा !
३
मोती नहीं चाहिए
हमे
ओस की वो बूंदे ही दे दो
हर सुबह
जिंदगी के लिए !
४
दिल करता है
तुम्हारे किचन के डिब्बओं पर लिख दूं
'चीनी... तुमसे मीठी नहीं लेकिन '
'चाय... तुमसे ताजी नहीं लेकिन'
'हल्दी... तुमसे पीली नहीं लेकिन'
'मिर्च... तुमसे तीखी नहीं लेकिन'
और भी बहुत कुछ
कि तुम बस मुस्कुरा कर रह जाओ...
उस मुस्कराहट से ज्यादा
कुछ हो सकता है क्या॥
खो कर
पाने कि तमन्ना लिए
खुश हैं हम
रेत भर कर मुट्ठी में
सपने संजो रहे !
२
रेत घडी
जिसने भी बनाई हो
वैज्ञानिक से ज्यादा
आशिक रहा होगा !
३
मोती नहीं चाहिए
हमे
ओस की वो बूंदे ही दे दो
हर सुबह
जिंदगी के लिए !
४
दिल करता है
तुम्हारे किचन के डिब्बओं पर लिख दूं
'चीनी... तुमसे मीठी नहीं लेकिन '
'चाय... तुमसे ताजी नहीं लेकिन'
'हल्दी... तुमसे पीली नहीं लेकिन'
'मिर्च... तुमसे तीखी नहीं लेकिन'
और भी बहुत कुछ
कि तुम बस मुस्कुरा कर रह जाओ...
उस मुस्कराहट से ज्यादा
कुछ हो सकता है क्या॥
सोमवार, 18 जनवरी 2010
फूल खिलेंगे
पत्ते
साख से
तब तक नहीं गिरते
जब तक जड़ों में
होता है जीवन
अपनेपन की
जड़ों से जुड़ कर
कैसे सूख सकता है
प्यार किसी का
रिश्ता देते हैं
हवा, पानी और खाद
कि फूल खिले
हर पौध में
पौधों का
जड़ों से रिश्ता
समझना है नए सिरे से !
मंगलवार, 12 जनवरी 2010
रिश्तों को भार ना बनाएं
रिश्तों को भार ना बनाएं
कहें, सुने, बातें मनवायें, मना ना करें
रिश्तों को भार ना बनाएं
उम्र छोटी है, बातों को लम्बी ना बनाएं
रिश्तों को भार ना बनाएं
ख़ामोशी की दुरी होती है लम्बी
समझें, समझायें, चुप्पी तोड़ें
रिश्तों को भार ना बनाएं
ये सड़क लम्बी है दूर तक जायेगी
क्षितिज को मिलाने का खाब हम क्यों पालें
रिश्तों को भार ना बनाएं
गुरुवार, 7 जनवरी 2010
तुम्हारे क़दमों के निशा
अब तक हैं
तुम्हारे क़दमों के निशा यहाँ
अब तक है
तुम्हारी खुशबू
इन् वादियों में
इक बीज जो बोकर गई थी तुम
इस बगीचे में
आज पेड़ बनकर
छाया देता है
मेरे दिल को
तुम्हारे क़दमों के निशा यहाँ
अब तक है
तुम्हारी खुशबू
इन् वादियों में
इक बीज जो बोकर गई थी तुम
इस बगीचे में
आज पेड़ बनकर
छाया देता है
मेरे दिल को
शुक्रवार, 1 जनवरी 2010
किताबों की तरह
किताबों कीतरह
पढना चाहता हूँ तुम्हें
पन्ना पन्ना !
समझना चाहता हूँ तुम्हें
इस तरह कि
किसी और ने ना समझा हो तुम्हें ।
तुम्हें पढ़ कर कुछ रेखांकित करना चाहता हूँ
जैसे तुम्हारी उन्मुक्त हंसी...
तुम्हारे सपने
तुम्हारे पंख
क्षितिज पर जो टिकी हैं तुम्हारी नज़रें ।
तुम्हारी उन्मुक्त हंसी में
जी भरकर जी लेना चाहता हूँ
अपनी सारी जिंदगी ।
किताबों ने लाया है
क्रांति कैसे बार ।
तल्बारों से भी भारी पड़े हैं किताब कई बार
और जन्म दिया है कई वादों को समय समय पर
पर इस बार नहीं चाहता कि बने कोई वाद।
किताब इक किताब रहे
और रहे बस मेरे लिए !
पढना चाहता हूँ तुम्हें
पन्ना पन्ना !
समझना चाहता हूँ तुम्हें
इस तरह कि
किसी और ने ना समझा हो तुम्हें ।
तुम्हें पढ़ कर कुछ रेखांकित करना चाहता हूँ
जैसे तुम्हारी उन्मुक्त हंसी...
तुम्हारे सपने
तुम्हारे पंख
क्षितिज पर जो टिकी हैं तुम्हारी नज़रें ।
तुम्हारी उन्मुक्त हंसी में
जी भरकर जी लेना चाहता हूँ
अपनी सारी जिंदगी ।
किताबों ने लाया है
क्रांति कैसे बार ।
तल्बारों से भी भारी पड़े हैं किताब कई बार
और जन्म दिया है कई वादों को समय समय पर
पर इस बार नहीं चाहता कि बने कोई वाद।
किताब इक किताब रहे
और रहे बस मेरे लिए !
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