शुक्रवार, 26 मार्च 2010

एलेक्ट्रोन

एलेक्ट्रोन
अतृप्त होते हैं
अकेले होते हैं


और वे ही हैं
इस धरती के संबंधो
के आधार ।

इक रासायनिक गठबंधन के लिए
इक नए निर्माण के लिए
इक नए सृजन के लिए
इक नई उर्जा के लिए
इक नई सम्भावना के लिए
जरुरी है
अतृप्त होना
अकेले होना
विचरते रहना

एलेक्ट्रोन की तरह।

एलेक्ट्रोन हैं हम
एलेक्ट्रोन हो तुम

चलो रचे नई सम्भावना !

रविवार, 21 मार्च 2010

द्वन्द हूँ मैं

प्रकृति
और विज्ञानं के बीच
द्वन्द हूँ मैं

नदी के
दूसरे किनारे की भांति
इर्ष्या में जल रहा
तट हूँ मैं
द्वन्द हूँ मैं

बाज़ार में होने
और बाज़ार के होंने
में फर्क नहीं कर पाने के बीच
संघर्ष हूँ मैं
द्वन्द हूँ मैं।

तैर रही है
सैकड़ो छविया
और हर छवि की है
सैकड़ो कहानिया
हर कहानी का पात्र हूँ मैं
द्वन्द हूँ मैं।

अदृश्य और अनगिनत
कामनाओं और वासनाओ के
वृताकार जाल में
गुरुत्व विहीन हो विचर रहा
मात्र ए़क वस्तु हूँ मैं
द्वन्द हूँ मैं


महत्वाकांक्षा और
स्वप्न के बीच झूलता
अपने असंतुलित भार से
अदृश्य सूर्य का
परिक्रमा कर रहा
पृथ्वी हूँ मैं

द्वन्द हूँ मैं

रविवार, 14 मार्च 2010

ईश्वर और इन्टरनेट

बाज़ार
है सजा
ईश्वर और इन्टरनेट
दोनों का।

ईश्वर
और इन्टरनेट
इक जैसे हैं

ईश्वर विश्वव्यापी है
इन्टरनेट भी

कण कण में
समांये हुए हैं दोनों
हर ज्ञानी अज्ञानी के
रोम रोम में
रचे बसे हैं
दोनों।

जिनते पत्थर
उतने ईश्वर
मंदिरों से
मजारों तक
गिरजा से
गुरूद्वारे तक
गली गली
हर चौबारे पर
मिल जाएगा
ईश्वर के रूप
निराकार
साकार
सनातन
चिरंतन।
इन्टरनेट के भी !

आस्तिक
नास्तिक
सगुन
निर्गुण
अद्वैत
द्वैत
इन्टरनेट के रूप हैं
ईश्वर के भी।

सुबह से
देर रात तक
ईश्वर
और इन्टरनेट
दोनों के दरबार
भरे रहते हैं।

दोनों
विर्तुअल हैं॥
आभासी
इन्हें महसूस किया जा सकता है...
छुआ नहीं जा सकता।

दोनों के
दुकान सजे हैं
बाजार सजा है
पण्डे और पुरोहित हैं
प्रचारक और
पी आर कंपनिया है
अजेंट्स हैं

इश्वर को
नहीं देखा मैंने
भूख मिटाते
रोग भागते
हां
जरुर देखा है
अपने प्रांगन में पैदा
करते भिखारी

इन्टरनेट भी
भूख नहीं मिटाता
रोग नहीं भागता

इश्वर युवाओं कि
पसंद है
और इन्टरनेट के भी
वुजुर्गो केअ
टाइमपास है
इश्वर
और इन्टरनेट।

पोर्न
सेक्स
उन्माद
जेहाद
व्यविचार
दोनों हैं यहाँ

अंतर
इतना भर है कि
इश्वर को पाने का
माध्यम बनता जा रहा है
इन्टरनेट।

आस्था का
दूसरा नाम
ना बन जाए
इन्टरनेट...

विश्व व्यापी जाल
इश्वर और इन्टरनेट।

बुधवार, 10 मार्च 2010

हरसिंगार उग आये हैं मेरे भीतर

थका हारा
उस दिन
जब तेरी गोद में
सर रख कर
सो गया था मैं
मेरे पसीने की
मेहनत भरी गंध को
दूर कर दिया था
'दीओ ' से
तुमने

दीओ की गंध
तो कब की जा चुकी है
लेकिन
तुम्हारी खुशबू से
महक रहा है
मेरे मन का आँगन

मानो
हजारों हरसिंगार
उग आये हो मेरे भीतर ।

तुम्हारा अंक

तालिकाओं में
खोये
आकड़ों के जाल में
उलझे उलझे
हम
मानो अंक
अंक ना हो...
तुम्हारा अंक हो !

सोमवार, 8 मार्च 2010

तस्वीरें

'तस्वीरें भी
धुंधली हो जाती हैं
समय के साथ लेकिन
यादों से ज्यादा नहीं...

यादों को
तुम भुला भी सकते हो
विस्मृत कर सकते हो
तस्वीरें फिर भी
जिन्दा रहती हैं
जिन्दा रखती हैं...

चलो इस्सी बात पर
मुझे खीचने दो
अपनी ए़क तस्वीर तुम "
कहा था मैंने
उस से ए़क बार
लेकिन ठीक से याद नहीं कब !

वो तस्वीर अब भी है ।

मंगलवार, 2 मार्च 2010

नुक्कड़ का कुत्ता

याद है
मुझे नुक्कड़ का वो कुत्ता

मुझे देखते ही पूँछ हिलाता था
जैसे कि इन्तजार हो उसे
मेरे आने का स्कूल की आठ घंटियों के बाद !

स्कूल के बाद सबसे पहले मिलता रहा मैं
उससे सुनाता रहा
मास्टर मास्टरनियों के किस्से
दोस्तों के साथ की गई मारपीट
लड़कियों के चोटी खीचने की कहानिया
कितना ही ख्हत्ता मीठा चूरन खिलाया था उसे
याद है मुझे नुक्कड़ का वो कुत्ता

फिर स्कूल से कॉलेज
पहले प्यार की कहानी
अपनी पहली कविता
बाबूजी की बीमारी
और माँ के नहीं रहने की खबर
बहिन के लिए वर की तलाश
और भाभियों की फटकार
वर्षों तक मेरा राजदार रहा था वो
याद है मुझे नुक्कड़ का वो कुत्ता

नौकरी की खोज
परीक्षाओं के फार्म
बेरोजगारी का दर्द
असफलता के आंसू और
फिर सफलता का पहला पोस्ट
क्या क्या नहीं बांटा था मैं उससे
याद है मुझे नुक्कड़ का वो कुत्ता


अपना शहर
ए़क दिन
पराया हो गया
पराये हो गए वो नुक्कड़
और वो कुत्ता भी...
फिर खबर आयी कि
पिछली सर्दी वो सोया तो सोया रह गया
कुत्ता था वो!
मेरे इन्तजार में नुक्कड़ नहीं छोड़ा उसने !

अंजुरी भर ख़ुशी

वह
अंजुरी भर
पाना चाहती है ख़ुशी

दोनों बाहें पसार
महसूस करना चाहती है हवा
ऊँचा कर अपने हाथ
छू लेना चाहती है आसमान
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी

ओस की बूंदों को समेटना चाहती है
अपनी नन्ही हथेलियों में
और गीले करना चाहती है अपने होठ
वह बादलों के नीले पंखों पर सवार हो
घूमना चाहती है दुनिया
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी

नहीं चाहती है खोना
गुमनामी के भीड़ में
नहीं पसंद है उसे मशीनी शोर
और मुखौटे वाले दोस्त
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी

गुनगुना चाहती है
किसी की कानों में
ए़क मीठी धुन और
फुसफुसाना चाहती है
किसी की धडकनों से साथ
ए़क कहानी की तरह
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी

समा जाना चाहती है
किसी में
अपने छोटे छोटे खाव्बों के साथ
और जीना चाहती है इक पल के लिए
सिर्फ अपने लिए
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी