रविवार, 24 सितंबर 2017

संघर्ष विराम

चलो डाल देते हैं
हथियार
स्वीकार कर लेते हैं
हार
बच जायेंगे कुछ बच्चे
असमय मृत्यु से
कुछ स्त्रियां बच जाएँगी
बलत्कृत होने से
कुछ किले मंदिर बच जायेंगे
ध्वस्त होने से

संघर्ष विराम की घोषणा से
कितने खुश होते हैं वृक्ष
नदी और चिड़िया। 

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

अचानक



कल तक जो पेड़
हरे थे पत्तियों की वजह से
अचानक वे हरी पत्तियां
हो जाएँ लाल
रिसे उनसे टिप टिप लहू
क्या बैठ सकती हैं
उन शाखों पर
नन्ही चिड़िया
गा सकती हैं
क्या फुदक फुदक कर
चीं चीं . 

गुरुवार, 14 सितंबर 2017

हिंदी : कुछ क्षणिकाएं



रौशनी जहाँ
पहुंची नहीं
वहां की आवाज़ हो
भाषा से
कुछ अधिक हो
तुम हिंदी


खेत खलिहान में
जो गुनगुनाती हैं फसलें
पोखरों में जो नहाती हैं भैसें
ऐसे जीवन का तुम संगीत हो
भाषा से
कुछ अधिक हो
तुम हिंदी

बहरी जब
हो जाती है सत्ता
उसे जगाने का तुम
मूल मंत्र हो
भाषा से
कुछ अधिक हो
तुम हिंदी.

४ 
तुम मेरे लिए
मैथिली, अंगिका, बज्जिका
मगही, भोजपुरी
सब हो 

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

मद्धम आंच

मद्धम आंच पर
पकती हैं
नरम रोटियां

मद्धम आंच पर ही
पकता है
कुम्हार का दिया और घड़ा
दिया जो आग से जलकर
रौशनी देता है
घड़ा जो पानी को सहेजता है
अपने भीतर

मद्धम आंच में
नहीं होता है
अहंकार
अट्टहास

मद्धम आंच पर
सिझता है प्रेम
धीरे धीरे सहजता से . 

गुरुवार, 7 सितंबर 2017

हत्यारा

यह समय
अनुकूल है
हत्या के लिए
अनुकूल है
हत्यारों के लिए भी .

हटा दो
जन्मजात बच्चो की नाक से लगी
आक्सीज़न की नली
यही नली लगा दो
किसानो के गले में
और उन्हें लटका दो
किसी पेड़ से या फिर छत से
या फिर किसी बिजली के खम्भे से

छेद दो गोलियों से
विरोधियों की कनपट्टी
ताकि उनकी आवाज़
न पहुचे सत्ताधीशों तक
न पहुचे आमजनों तक

किसी युवा को
थमा दो हथियार
दे दो निर्देश
किसी के भी धड से
अलग कर देने को गर्दन
जिनके विचार तुम्हारे विचार से
मेल नहीं खाते

यह समय
अनुकूल है
हत्या के लिए
अपने अपने तर्क
छुपा दो तकिये के नीचे . 

सोमवार, 4 सितंबर 2017

युवा

जब उसकी उम्र
स्कूल जाने की थी
वह उठा रहा था
किसी ढाबे में जूठे बर्तन

जबकि वह लिखना चाहता था
काली स्लेट पर
सफ़ेद चाक से उजाला
वह रगड़ रगड़ कर
चमका रहा था
कडाही और तवे की काली पेंदी

उसकी पीठ पर
होना चाहिए था बस्ता
वह तेज़ी से उठाता था
लकड़ी के गट्ठर
कोयले की बोरी
गेंहू धान का बोझ

उम्र बीतते देर कहाँ लगती
वह अब लिखता है
आसमान की छाती पर
कोलतार से बेकारी
सरकार कहती है
युवा है देश
तालियों की गडगडाहट में
वह ढूंढता है खुद को .

शनिवार, 2 सितंबर 2017

सड़क

सड़कें
कहीं नहीं पहुँचती
पहुंचाती है
यात्री को।

यात्री
सड़क के बिना
नहीं पहुच सकते
कहीं भी
मंजिल यदि साध्य है
सड़कें साधन।

सड़कें
धरती को नहीं छोड़ती
जो धरती को छोड़ते हैं
औंधे मुँह गिरते है
किसी न किसी मोड़ पर

मैं बने रहना चाहता हूँ
सड़क
तुम पाना अपनी मंजिल
यहीं से गुज़रते हुए।