बुधवार, 21 सितंबर 2022
कैसे बनती है मां
सोमवार, 19 सितंबर 2022
मां का नहीं होना
जैसे वृक्ष का है
जड़ विहीन हो जाना
नदी का है
जल हीन हो जाना
पक्षी का है
पंख हीन हो जाना
आग का है
तेज हीन हो जाना
वायु का है
गति हीन हो जाना ।
मां का होना होता है
दुनिया का होना।
शुक्रवार, 16 सितंबर 2022
मां का नहीं होना
सूरज के होते हुए भी
पसरा होता है अंधेरा
चांद के होते हुए
नहीं होती शीतलता
नर्म दूब जब लगे
तपता अंगारो सा
फिर लगता है क्या होता है
मां का नहीं होना।
गुरुवार, 15 सितंबर 2022
मां का नहीं होना
मां के नहीं होने
और होने के बीच का अन्तर
मां के रहते
कभी समझ नहीं आता
और जब समझ में आता है
मां फिसल जाती है
समय की मुट्ठी से
रेत की तरह
मुट्ठी से फिसला हुआ रेत
कब लौटा है मुट्ठी में।
गुरुवार, 18 अगस्त 2022
डी एच लारेंस की कविता सर्च द ट्रुथ का अनुवाद
प्रस्तुत है डी एच लारेंस की छोटी कविता सर्च द ट्रुथ का अनुवाद ।
सत्य की खोज
डी एच लॉरेंस
अब और कुछ नहीं खोजें, कुछ भी नहीं
सत्य के सिवा ।
धैर्य बनाकर प्रयासरत रहें एवं सत्य को प्राप्त करें ।
अंत में , स्वयं से प्रथम प्रश्न करें
:
ओह ! कितना बड़ा मिथ्यावादी हूँ मैं !
अनुवाद :
अरुण चन्द्र राय
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Search for Truth
D H Lawrence
Search for nothing any more, nothing
except truth.
Be very still, and try and get at the truth.
And the first question to ask yourself is:
How great a liar am I?
डी एच लारेंस की कविता रेलेटिविटी का अनुवाद
प्रस्तुत है डीएच लारेंस की एक और छोटी कविता - रिलेटिविटी का अनुवाद । छोटी कविता में डीएच लारेंस अत्यंत गूढ बिम्ब पैदा करते हैं जिनका अनुवाद अत्यंत कठिन हो जाता है । एक सफल/असफल कोशिश देखिये ।
सापेक्षता
डी एच लारेंस
मुझे पसंद हैं सापेक्षता और क्वांटम
सिद्धांत
क्योंकि मैं उन्हें नहीं समझता
और मुझे ऐसा महसूस होता है कि
किसी हंस की भांति अंतरिक्ष घूम रहा
है यहाँ से वहां
वह बैठ नहीं सकता एक स्थान पर होकर स्थिर ताकि माप लिया जा
सके
उसका:
या फिर कोई आवेग से भरा परमाणु हो
जिसका मन बदल रहा है बार बार।
अनुवाद अरुण चंद्र रॉय
Relativity
D H Lawrence
I like relativity and quantum
theories
because I don’t understand them
and they make me feel as if space
shifted about like a swan that can’t settle,
refusing to sit still and be
measured;
and as if the atom were an
impulsive thing
always changing its mind.
डी एच लारेंस की कविता ग्रीन का अनुवाद
अमरीकी कवि डी एच लारेंस को अङ्ग्रेज़ी कविता में "इमेजिस्ट" कवि के तौर पर माना जाता है जब उन्होने छोटी किन्तु विम्ब प्रधान कवितायें लिखी। ऐसी ही एक कविता है "ग्रीन" जो 1914 में इमेजिस्ट कविताओं के एक संकलन में प्रकाशित हुई थी । कुछ लोग इस कविता में हरी आँखों को उनकी प्रेयसी 'फ्रीदा' की आँखें कहते हैं । प्रस्तुत है इस छोटी कविता के अनुवाद की कोशिश ।
हरा
डी. एच. लॉरेंस
भोर थी हरे सेब की तरह
आकाश था हरे अंगूर की तरह धूप में टंगा
इन दोनों के बीच चाँद लग रहा था मानो हो कोई सुनहरी पंखुड़ी
उसने अपनी आँखें खोलीं, और
वे चमक उठीं हरी, उदास उजड़े हुये फूल की तरह
पहली बार, हाँ, मैंने पहली बार देखा ऐसा ।
अनुवाद : अरुण चन्द्र राय
Green
D. H. Lawrence
The dawn was apple-green
The sky was green wine help up in the sun,
The moon was a golden petal between.
She opened her eyes , and green
They shone, clear like flowers undone
For the first time, now for the first time seen.
बुधवार, 17 अगस्त 2022
डी एच लारेंस की कविता : सेल्फ पिटी का अनुवाद
डी एच लारेंस प्रसिद्ध अमरीकी उपन्यासकार, कहानीकार और कवि हुये हैं । एक ओर जहां उन्होने "संस एंड लवर्स" जैसा उपन्यास लिखा है वहीं उन्होने बहुत छोटी छोटी कवितायें भी लिखी हैं जिनकी समीक्षायें कई कई पृष्ठों में की गई हैं । ऐसी ही एक छोटी कविता - सेल्फ पिटी के अनुवाद की कोशिश कर रहा हूँ। पढ़िएगा ।
आत्म-करुणा
देखा नहीं करते
स्वयं पर तरस खाते ।
एक छोटी चिड़िया
किसी बर्फीली रात में शीत के प्रकोप से मर जाती है
बिना कभी अपने आप पर तरस खाये ।
Self-Pity
I never saw a wild thing
sorry for itself.
A small bird will drop frozen dead from a bough
without ever having felt sorry for itself.
- D H Lawrence
मंगलवार, 14 जून 2022
उसे सुनना जो नहीं कहा गया है
जो नहीं कहा गया है
उसे सुनने के लिए
ईश्वर ने नहीं बनाए कोई कान
सुना जाता है उसे तो
हृदय के स्पंदनों से
जो कहा नहीं गया
वह तो संगीत है
जैसे बिना कहे बहने वाली पहाड़ी नदी का संगीत
इस संगीत को कब सुना है कान वालों ने
इसे तो सुनती है तलछटी में रहने वाली चंचल मछलियां
अपनी सांसों के जरिए।
वह जो नहीं कहा है आपने
उसे तो सुना जा सकता है
फूलों की पंखुड़ियों को छू कर
गेंहू की बालियों को अपने बालों में खोंस कर
आसमान के बादलों को
अपनी बाहों में भरने जैसा महसूस कर
और इनके लिए तो चाहिए
बस कोमल सा हृदय
कान वाले कहां सुन पाएं है
अनकहा !
शुक्रवार, 3 जून 2022
संकट
संकट में हैं नदियां
संकट में इनकी अटखेलियां
संकट में हैं पहाड़
संकट में है हमारा प्यार
संकट में हैं तितलियां
संकट में हैं मंजरियां
संकट में हैं तालाब
संकट में है इनका आब
संकट में हैं पेड़ की छांव
उखड़ रहे हैं इनके पांव
संकट में भालू शेर
हो रहे ये नित दिन ढेर
संकट में नहीं है पूंजी
संकट में नहीं है बाजार
तरह तरह की तरकीबें अपनाकर
रहता यह हरदम गुलजार।
गुरुवार, 19 मई 2022
छूटना
1.
छूटना
कुछ और पाने की ओर
होता है चलना
2.
हर चीज जो है
ठीक है छूट जाएगी
इसको समझने में
ठीक नहीं
जिंदगी गंवाना
3.
पानी से
उसका रंग
उसका स्वाद
उसकी तासीर
कब छूटती है!
(बीज शब्द "छूटना": श्वेता कसाना, अनुवादक साथी )
शनिवार, 7 मई 2022
मां को अब
मां को अब
छोड़ देनी चाहिए सबसे अंत में
खाने की आदत
मां को अब
नहीं छिपानी चाहिए अपनी बीमारी
असह्य हो जाने तक
मां को अब
नहीं रोना चाहिए
अकेले में चुपचाप
मां को अब
मनुष्य हो जाना चाहिए
हाड़ मांस वाला मनुष्य
जिसे भूख लगे, चोट लगे, पीड़ा हो, दर्द हो
हे दुनियां भर की माएं
उतर जाओ देवी के सिंहासन से ।
शनिवार, 30 अप्रैल 2022
राजा और मंत्रियों की यात्राएं
राजाओं और उनके मंत्रियों के लिए
आवश्यक होना चाहिए यात्राएं अस्पतालों की
दुख और पीड़ा को अनुभव करने का यह सहज स्थान
मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने का सबसे प्रभावशाली साधन है।
उन्हें नियमित रूप से जाना चाहिए
शमशान घाट और कब्रिस्तान भी
ताकि उन्हें सनद रहे आदमी की हदों के बारे में ।
किसी किसान के घर भी
मंत्रियों और राजाओं को जाना चाहिए
जिससे कि उन्हें भान हो जाए कि
दुनिया की सत्ता के सच्चे हकदार कौन हैं ।
बुरा नहीं लगेगा किसी को यदि राजा या मंत्री
उस छोटे बच्चे से मिल आएं जिसने खोया है अपना पिता
सीमा पर हुई गोलीबारी में
जबकि दोनों तरफ के अफसरान कर रहे वार्ता
बड़ी गर्मजीशी से और अंत में मिला रहे थे हाथ
कर रहे थे गलबहियां।
लेकिन राजाओं और उनके मंत्रियों के पास
इन दिनों वक्त नहीं है
वे कर रहे हैं अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर
नए व्यापार के लिए कर रहे हैं करार,
खरीदे जाने हैं नए नए हथियार
उन्हें क्या ही फर्क पड़ता है कि
पड़ रहे हैं पहाड़ों में दरार,
बढ़ गया है गांवों और शहरों का तापमान
या झीलों में नहीं आ रहे हैं चिड़िया के रूप में
विदेशी मेहमान।
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022
संभव
सड़क होने का अर्थ
मंजिल का होना नहीं होता है
पानी होने से बुझ जाए प्यास
कब होता है ऐसा।
बादल घूमडेंगे तो बरसेंगे भी
हर बार ऐसा नहीं होता है
रोपे गए हर बीज से प्रस्फुटित हो पौध ही
ऐसा भी कब हुआ है ।
आपके पास शब्द हैं
और आप लिख सकें कविता
हो जाए क्रांति
कर सकें प्रतिरोध
कहां होता है संभव ऐसा भी।
आप प्रेम करें और
मिले बदले में प्रेम
आप समर्पित रहें और
मिले आपको भी समर्पण
यह भी कहां हुआ है संभव !
शनिवार, 2 अप्रैल 2022
चैत
इधर चैत जल रहा है
और दुनिया गा रही है
बसंत के गीत
खड़ी फसलों के बेमौसम बरसात में
गिर जाने के खतरे के बीच
लोग शोक मना रहे हैं गिरे हुए पत्तों पर
और ये ऐसे लोग हैं जिन्हें
शाख से गिरे हुए पत्तों एवं
पके हुए फसलों के बेमौसम बारिश में गिरने के बीच का फर्क
नहीं है मालूम।
नदियां और पोखर गए हैं सूख
बढ़ती ही जा रही है लोगों की भूख
जबकि पेट की भूख जस की तस बनी हुई है
एक भूख को श्रेष्ठ बताने के लिए चलाए जा रहे हैं
संगठित अभियान
और एक भूख को लगातार किया जा रहा है
मुख्यधारा से ओझल
भूख और भूख के बीच के फर्क के प्रति अज्ञानता ही
सुखा रही है नदियां और पोखर
काश कभी जान पाते आप और हम।
चैत को नहीं जलना चाहिए
नदियों को नहीं सूखना चाहिए
पोखरों को जिंदा रहना चाहिए
और भूख पर लगाम लगानी चाहिए
यह केवल नारा भर है जिसे एक साथ पोस्ट किया जाना है
विभिन्न मीडिया मंचों पर।
रविवार, 20 मार्च 2022
गौरैया
सोमवार, 14 मार्च 2022
सुखद हरा रंग
धूप को टिकते हुए..
पत्तों का रंग
कितना सुखद हरा
होता है ।
ये हरीतिमा
समृद्धि की ।
इसी हरे रंग में
जीवन की उर्जा
ऊष्मा और
कभी देखना
मेरा चेहरा भी
तुम्हारी आभा से
कैसे खिल जाता है
और हो जाता है
सुखद हरे रंग जैसा ।
जो ओढती हो तुम
पहनती हो
वही हरा रंग
जो जीवंत है
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022
महानगर में बसंत
महानगर में बसंत
सड़कों के किनारे लगे
बबूर, कीकर के वृक्षों के काले पत्तों के बीच
अपुष्ट खिले बेगनबेलिया से
झाँकता है और
घुल जाता है झूलते अमलताश की यादों से जुड़ी
गांवों की स्मृतियों में ।
महानगर में बसंत
दस इंच के गमलों में माली द्वारा लगाए गए
अकेली गुलदाउदी के अलग अलग कोणोंसे
खींचे गए फोटो और सेलफियों को सोशल मीडिया के
विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर किए गए अपडेट से
झाँकता है और
घुल जाता है आमों की नई मंजरियों की गंध से जुड़ी
गांवों की स्मृतियों में ।
महानगर में बसंत
वास्तव में उन्हीं के हिस्से आता है
जो सुबह होने से पहले पार्कों की सफाई करते हुये
गिरे हुये फूलों को देख हिलस उठते हैं
जो शहर की नर्सरियों में भांति भांति के नन्हें नन्हें पौधों को
नहाते हैं, धुलाते और सजाते हैं
महानगर में बसंत
पौधे बेचने वालों के ठेले पर रखे गमलों के समूह में
होता है अपने उन्मान पर ।
सोमवार, 31 जनवरी 2022
जादुई भविष्यवक्ता
अमरीकी कवयित्री सारा ट्रेवर टीसडेल (1884-1933) की कविता द क्रिस्टल गेजर का हिन्दी अनुवाद अरुण चन्द्र राय द्वारा ।
मैं स्वयं को फिर से स्वयं में लूँगी समेट
मैं अपने बिखराव को एक कर दूँगी खुद को भेंट
उन्हें मिलाकर गढ़ लूँगी एक अद्भुद प्रकाश पुंज
जहां से निहारूंगी मैं चांद और सूरज का कुंज
घंटों निहारूंगी समय को जैसे कोई जादूगरनी
भविष्य और वर्तमान की घूमती हो जैसे घिरनी
और बेचैन लोगों की उतरूँगी मैं तस्वीर
आत्ममुग्ध होकर फिर रहे होकर जो अधीर
शुक्रवार, 28 जनवरी 2022
लोकतन्त्र का पर्व चुनाव
लोकतन्त्र का पर्व चुनाव
जन गण मन का पर्व चुनाव
गणतन्त्र का मर्म चुनाव
लोकतन्त्र का पर्व चुनाव
जाति की बंधन तोड़ो
धर्म का भेद छोड़ो
अपने मुद्दों को पहचानो
मत छोड़ो मजधार में नाव
लोकतन्त्र का पर्व चुनाव
गणतन्त्र का मर्म चुनाव
लोक लुभावन वादों को छोड़ो
असली मुद्दों से नाता जोड़ो
रोजी रोटी का न हो तनाव
लोकतन्त्र का पर्व चुनाव
गणतन्त्र का मर्म चुनाव
अमीर गरीब को समान अधिकार
सबको धंधा सबको रोजगार
न हो किसी को कोई अभाव
लोकतन्त्र का पर्व चुनाव
गणतन्त्र का मर्म चुनाव
सोमवार, 17 जनवरी 2022
अमेरिकन कवयित्री ग्वेन्डोलिन ब्रूक्स की कविता "द क्रेज़ी वुमेन" का अनुवाद
अमेरिकन कवयित्री ग्वेन्डोलिन ब्रूक्स की कविता "द क्रेज़ी वुमेन" का मूल अँग्रेजी से अनुवाद अरुण चन्द्र रॉय द्वारा
मैं नहीं गाऊँगी मई का गीत
मई के गीत मे होना चाहिए मनमीत
मैं करूंगी नवम्बर के आने का इंतजार
और गाकर करूंगी उदासी का इज़हार
मैं करूंगी नवम्बर तक प्रतीक्षा
तभी पूरी होगी मेरी आंकक्षा
मैं धुंध अंधेरे में बाहर जाऊँगी
और ज़ोर ज़ोर से गाऊँगी
और दुनिया मुझे घूरेगी
मुझपर फब्तियाँ कसेगी
"कहेगी है यह औरत पागल, है पागल इसकी रीत "
जो नहीं गाती है मई में खुशी के गीत। "