गुरुवार, 30 मई 2024

गजल


 (1)
वह यूं धीरे धीरे बदल रही है
 जिंदगी रेत सी फिसल रही है 

 (2)
बदला है मौसम कुछ इस तरह
रूह  बर्फ सी पिघल रही है 

(3)
हर बात पर हँसती भी वह कभी  
अब न किसी बात से बहल रही है 

(4)
बसंत जायेगा तो फिर आएगा 
कोयल है कह कर मचल रही है  

 (5)
जो दौड़ेगा गिरेगा भी दुनिया में 
इसी हौसले से दुनिया टहल रही है 

 (6)
हार जाएगी, नहीं छोड़ेगी हौसला 
यह जान बच्चों सी मचल रही है   

सोमवार, 20 मई 2024

मुझे क्या!


गर्मी
खूब गर्मी
जितनी गर्मी
उतने एसी
जितने एसी
उतनी गर्मी
और गर्मी
और एसी
और गर्मी
और एसी
मैदान में गर्मी
पहाड़ में गर्मी
रेगिस्तान में गर्मी
मैदान में एसी
पहाड़ों में भी एसी
रेगिस्तान में एसी
गाड़ी में एसी
रेल में एसी
जहाज में एसी
दफ्तर में एसी
होटल एसी
ढाबा एसी
बस में एसी
मेट्रो में एसी
और गर्मी
और एसी
और गर्मी
और एसी
........और फिर....
धरती की ऐसी की तैसी।