मंगलवार, 31 अक्टूबर 2023

युद्ध

 1. 

बम्ब जहाँ गिरता है 

 गिनती तो होती है आदमियों के मरने की

नहीं गिनती होती है कि 

कितनी तबाह हुई मिट्टी. 


2.

बारूद के फटने से 

खून से सने बच्चों को तो गिन लेते हैं हम 

नहीं गिने  जाते हैं 

गिरे हुए पेड़ , झुलसे हुए पत्ते. 


3. 

राकेटो के धमाके से 

इसकी खबर तो आती है कि टूट गए हैं बाँध 

नहीं खबर आती है कि 

मर गईं हैं  सैकड़ों मछलियाँ. 


4. 

टैंको की धमक से 

टूटी सड़कों की तस्वीरें छा जाती हैं 

दुनियाँ भर में 

अनखिची रह जाती हैं 

चिड़ियों के घोंसलों से गिरे अण्डों की तस्वीरें.  

सोमवार, 23 अक्टूबर 2023

रावण

हममें रावण

तुममे रावण

हम सब में 

रावण रावण


ऊपर रावण

नीचे रावण

क्षितिज क्षितिज

रावण रावण 


पूरब रावण

पश्चिम रावण

दशों दिशा में

रावण रावण


भीतर रावण

बाहर रावण

मन मानस में 

रावण रावण 


पल में रावण

क्षण में रावण

घट घट में

रावण रावण


कहां नहीं है

रावण रावण ! 

किसमें नहीं है

रावण रावण !


क्यों उसका हम

 वध करें

पूछ रहा है यह 

रावण रावण। 


अहिंसा की समाधि

 जितनी अधिक

संहारक शक्ति होगी

होगी उतनी ही अधिक पूछ

उतने ही अधिक होंगे दोस्त 

संहार के जयघोष से 

अखबारों के पन्ने होंगे भरे

उतना ही अधिक बढ़ेगा 

बाजार में व्यापार । 


अहिंसा की समाधि पर

फूल चढ़ाने की परंपरा

शायद कभी खत्म न हो

इस सभ्य दुनिया में। 

गुरुवार, 19 अक्टूबर 2023

पकते हुए धान

पकने लगे हैं  धान

बजने लगा है 

हवा में संगीत 

घुलने लगी है 

ठंढ, धूप में . 


झड़ने लगी है 

रातरानी 

लदने लगे हैं 

अमलतास ओस से

पकते हुए धान के साथ  . 


खलिहान की आतुरता 

देखते ही बनती है 

धान के स्वागत के लिए  .  




सन्नाटा

फर्क है 
सन्नाटे और चुप्पी में 

चुप्पी जा सकती है 
चुनी 
लेकिन सन्नाटा 
अक्सर जाता है 
थोपा . 

बुधवार, 18 अक्टूबर 2023

प्रतिमा और प्राण


बनती हैं 

प्रतिमाएं मिट्टी की 

बड़े जतन  से कुम्हार 

गढ़ता है सबसे पहले पैर 

और आखिरी में आँख । 


आँखों के खुलते ही 

प्रतिमा में प्रतिष्ठित हो जाते हैं प्राण ! 


सचमुच ,आँखों में  ही बसते हैं प्राण । 


सोमवार, 9 अक्टूबर 2023

मानवीय प्रवृत्ति


पेड़ से पत्तों को 

होना ही होता है अलग 

नियम है यह प्रकृति का 

लेकिन पत्तों को सायास 

पेड़ से अलग करना 

है प्रवृत्ति मानवीय !


समय से फलों को 

होता ही है पकना 

नियम है यह प्रकृति का 

लेकिन फलों को 

सायास पकाना 

 है प्रवृत्ति मानवीय ! 


समय से उम्र को 

ढलना ही होता है 

नियम है यह प्रकृति का 

लेकिन रोकना उम्र को ढलने से 

 है प्रवृत्ति मानवीय ! 

जॉन फॉस की कवितायेँ

 वर्ष २०२३ के लिए साहित्य  के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता जॉन फ़ॉस की कविताओं का हिंदी अनुवाद 

(THE MOUNTAIN HOLDS ITS BREATH)

साँसें रोक कर खड़ा पहाड़  

 

उसने ली गहरी साँस

और फिर वहीँ टिक गया पहाड़

और पहाड़ वहीँ टिका रहा सदियों तक 

और इस तरह पहाड़ बचाए रहा अपना अस्तित्व

 

और उसकी जड़ें नीचे धसती रहीं

गहरी और बहुत गहरी

स्वयं में लिपटी हुई

और थामें हुई अपनी साँसें

 

स्वर्ग और समुद्र

जब मचा रहे हाहाकार

रोके हुए हैं अपनी साँसें, पहाड़ . 

 

 

LIKE A BOAT IN THE FINE WIND

तूफ़ान में नाव की भांति

 

 

मैं और तुम

तुम और चाँद

तुम और हवा

तुम और ये झिलमिल सितारे

शायद

मिटटी में दबकर 

सड़ रही लाशों की

तमाम दुर्गंधों

के बीच

कई लोग, मेरी तरह

या उनकी तरह जो

दफ़न कर देते हैं अपनी

हतोत्साहित आशाएं

बिना किसी पीड़ा के.

 

हाँ! किसी तूफ़ान में नाव की भांति

मैं और तुम .

 

 

ONLY KNOW

जो केवल हम जानते हैं

 

गीत,

समुद्र का गीत

पहाड़ की चोटियों से निकलकर  

छा जाता है आसमान के वितान पर

 

नीले क्षितिज पर, गुनगुनाते हुए

साथ साथ हैं हम

और जहाँ हम नहीं कहते कुछ भी

एक दूसरे से 


और अनकहा,

जो केवल हम जानते हैं  !

 

 हिंदी अनुवाद : अरुण चन्द्र राय