शनिवार, 25 सितंबर 2021

पुराने सिक्के

 


पुराने सिक्के 

जैसे पिता मौजूद हों सामने 

रख दी हो उन्होंने हाथ में  

सपनों को खरीद लेने की ताकत 


पुराने सिक्कों को देख कर 

मां को याद आ जाते हैं पिता 

पंच पैसी या दस पैसी

चवन्नी अठन्नी या रूपया को देख 

पिता के संग यात्रा कर लेती है वह 


संदूकची में पड़े 

पुराने सिक्कों को देख 

पिता तो याद करती हैं मां 

वे धुंधली आंखों से पहचान जाती है उन्हें कि

कब, किस मौके पर दिए थे उन्होंने 

चवन्नी या अठन्नी 


पुराने सिक्के 

भले कोई मोल न हो उनका 

फिर भी बहुमूल्य हैं वे, अनमोल हैं वे। 




बुधवार, 22 सितंबर 2021

एकांत में वार्तालाप

अमेरिकन ब्लैक कवयित्री हेरियट मुलेन की कविता - Conversation In Isolation का अनुवाद 


एकांत में वार्तालाप

अनुवाद : अरुण चंद्र राय

 

 

मेरे पड़ोसी

लगा रहे हैं आँगन में दीवार

बाँट रहे हैं आँगन

मजबूत हो रही है हमारे बीच

यह दीवार ।

 

मैं आधा आँगन चलता हूँ

तभी मुझे एहसास होता है कि

भूल गया हूँ मास्क पहनना

 

मेरे सामने चींटियाँ

चल रही हैं एक दूसरे के पीछे

हम सभी चले जा रहे हैं कहीं

करते हुये भरोसा

 

मेरी खिड़की के बाहर

दो खंभों के बीच टंगी अलगनी पर

सुस्ता रही है एक गौरैया ।

 

पगडंडी पर गिरे पड़े हैं

पके हुये नींबू

जिन्हें बीनना है मुझे

झाल-मूरी बनाने के लिए ।

 

नीली हवाओं के

हल्के छूअन से अधिक

कुछ भी नहीं कोई भी नहीं

स्पंदित करता है मुझे । 

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

ईश्वर के प्रांगण में


ईश्वर के प्रांगण में 

प्रस्तरों पर उत्कीर्ण मुद्राओं को बताते हुए

मार्गदर्शक ने बताया कि

जब यह मंदिर नहीं था यहां

जब स्वयं ईश्वर भूमि से प्रकट नहीं हुए थे 

उससे भी पहले मौजूद था

वह वृक्ष और सरोवर।


वह आह्लादित होकर

बता रहा था ईश्वर की महिमा

भाव विभोर होकर बताया कि

किस तरह इस वृक्ष पर 

धागा बांधने से पूरी हुई मनोकामना 


मैने कहा 

है मार्गदर्शक ! 

ठीक पहचाना आपने 

ईश्वर यही वृक्ष और सरोवर तो है

जो पूरी करते हैं कामनाएं,

उसके बोलने का प्रवाह रुक गया

वह एक पल को सोचा और 

हां में सिर हिलाते हुए उसकी आंखें चमक उठीं

जैसे निर्वाण प्राप्त हो गया हो उसे

वह वृक्ष के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हुआ और 

सरोवर में कूद गया।

- अरुण चंद्र राय

मंगलवार, 14 सितंबर 2021

सैन्य छावनी से

हम आधुनिक लोग हैं 

हमारे पास है दुनियां भर का ज्ञान

विज्ञान और तकनीक 

बन चुकी हैं हमारी दासियां 

हमारे पास सब जानकारियां मौजूद हैं 

राजा से प्रजा तक की, कि

कौन कब उठता है, नहाता है, 

कब खाता पीता है, क्या खाता पीता है 

कैसे कपड़े पहनता है 

जाति मूल धर्म और आस्था तक की गणना 

कर ली हमने ।


हम क्षमता रखते हैं

 एक दूसरे के व्यवहार और निर्णयों को प्रभावित करने  की

 उन्हें अपने हितों के अनुसार उपयोग और उपभोग करने की 

हम हिंसा में विश्वास नहीं करते -- ऐसा कहते कहते 

हमने हथिया लिए सब पहाड़, नदी, जंगल 

और प्रयोग कर लिए इतिहास से सबसे खतरनाक हथियार 

जिसके हथियार जितने खतरनाक हैं 

वह उतना ही बौद्धिक और शक्तिशाली माना जायेगा 

हमने निर्धारित कर दिए ऐसे नियम। 

कहने को तो और भी बातें हैं किंतु 

संक्षेप में समझें इसे, अंत में 

हम बेचते हैं युद्ध और 

खरीदते हैं शांति,

इसे आप तब तक नहीं समझेंगे जब तक आप 

दो दिन गुजार न लें किसी सैन्य छावनी में। 











सोमवार, 13 सितंबर 2021

हिंदी :कुछ क्षणिकाएं

 हिंदी दिवस के अवसर पर कुछ कविताएं 


हिंदी : कुछ क्षणिकाएं

रौशनी जहाँ

पहुंची नहीं

वहां की आवाज़ हो

भाषा से

कुछ अधिक हो

तुम हिंदी

खेत खलिहान में

जो गुनगुनाती हैं फसलें

पोखरों में जो नहाती हैं भैसें

ऐसे जीवन का तुम संगीत हो

भाषा से

कुछ अधिक हो

तुम हिंदी

बहरी जब

हो जाती है सत्ता

उसे जगाने का तुम

मूल मंत्र हो

भाषा से

कुछ अधिक हो

तुम हिंदी.

४ 


तुम मेरे लिए

मैथिली, अंगिका, बज्जिका

मगही, भोजपुरी

सब हो .

शनिवार, 11 सितंबर 2021

पेरू की चर्चित कवियत्री विक्टोरिया ग्युरेरो की कविता - एनएन 3

 पेरू की चर्चित कवियत्री विक्टोरिया ग्युरेरो की कविता - एनएन 3

अनुवाद : अरुण चन्द्र राय


बोलो?
क्या कविता बोलेगी, उठाएगी प्रश्न?

मैं चिल्लाना चाहती हूँ
मेरा गला सूख गया है
मेरा गला, अरसे से है खामोश, रूंध गया है

किताबों में मुझे वह शब्द दिखाई देता है 
जिसका मैं उच्चारण नहीं कर सकती
अपने दोस्तों के सामने 
मुझे छिपना पड़ता है 
महिलाओं के शौचालय में।

(मेरी मां फैक्ट्रियों में सिलाई का काम करती थी
युद्ध के बाद वह पांच बच्चों के साथ विधवा हो गई थी)
क्या कविता बोलेगी, उठाएगी प्रश्न?

आइए आपको उन बिजलियों के बारे में बताती हूं
जो मेरी छाती में कड़क रहीं हैं 
उन बादलों के बारे में भी बताती हूं जिनके साथ
तैर रहे हैं मेरे सपने और 
इन सपनों के धागे अटके रहते हैं मेरी गर्दन से ।  

मशीनों के शोर से बनी फैक्ट्रियां
गूंगी महिलाओं से बनी फैक्ट्रियां
भठ्ठियों से बनी फैक्ट्रियां

सूरज के निकलने से लेकर 
काम से घर लौटने तक  
मेरे जेहन में ये शब्द तपते रहते हैं कि
क्या कविता मेरे प्रश्न उठाएगी
यदि उठाएगी तो उसके शब्द क्या होंगें?
क्या कविता मेरी मां का दुख भी बोलेगी?

शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

आत्महत्या

उदासियों से भरी इस दुनिया में रहना यदि उदास करता है तुम्हें तो चलो खत्म करते हैं अपना जीवन लेकिन जीवन खत्म करने से पहले चलो मिल आते हैं किसी नेत्रहीन से या फिर किसी दोनो पैरों से अशक्त से नहीं तो जिसने गंवाए हैं अपने हाथ चलो उसी से मिल आते हैं एक पल। ऐसा कभी कोई मिला है तुम्हें जिसने खो दिया है अपने किसी प्रिय को हाल ही में लेकिन उन्होंने रखा हौसला कितने ही रोज सोते हैं भूखे खुले आसमान में लेकिन उन्होंने नहीं चुना अभी तक मृत्यु, जबकि उनके पास था मृत्यु के वरण का ठोस कारण। मृत्यु का चुनना हमारा अधिकार नहीं हम तो केवल ईश्वर के इस सुन्दरत्तम सृजन के एक रूप हैं।

मंगलवार, 7 सितंबर 2021

पानी का रंग

1

यदि होता 
पानी का कोई अपना रंग 
रंग गई होती दुनियाँ की हर चीज़ 
उसी रंग में । 

2

जो होता पानी का 
कोई अपना रंग 
शायद वह इतना 
मिलनसार नहीं होता । 

3

किसी और के रंग में 
रंगने के लिए 
जरूरी होता है 
अपने रंग को छोड़ना ।