शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

मेरा जन्मदिन

(मेरे जन्मदिन का उल्लेख सरकारी फार्मों के अतिरिक्त कहीं और नहीं है।  कई मित्र कई बार पूछते हैं।  इधर एक मित्र ने फिर से जन्मदिन बताने का आग्रह किया ताकि वे अपने डेटाबेस में शामिल कर सकें।  जिस देश की आधी जनता सूखे से त्रस्त हो, पीने के पानी के लिए भी संघर्ष हो , या फिर अलग अलग तरह की लड़ाई हो, मुझे लगता है यह शुभकामनाएं देने का समय नहीं है।  इसी से उपजी एक कविता।  )



माँ ने कहा था 
जब मैं उसके पेट में था 
इतनी बारिश हुई थी कि 
दह गए थे खेत सब 
मिट्टी के घर मिट्टी बन गए थे 

और जब पैदा हुआ मैं 
उस साल बिलकुल भी बारिश नहीं हुई 
फसल सब जल गए  
और बैल बिक गए थे 

जिस दिन पैदा हुआ था 
कई बच्चे और पैदा हुए थे 
कई तो मर गए थे उसी दिन 
कई को पीलिया  मार गया 
कई "छोटी माता" तो कई "बड़ी माता "के 
गुस्से के  हो गए थे शिकार

उसी शाम खेत से लौटते हुए एक औरत
गायब हो गई थी जो अब तक नहीं मिली है 
और प्रसव करने वाली दाई ने 
राख खिलाकर मारा था 
कई बच्चियों को जन्मते ही 
उसी दिन  

सोचता हूँ आज मैं 
कौन सा साल नहीं है ऐसा 
जब खेत न डूबते हो फसल समेत 
या फिर कौन सा दिन नहीं है 
जब कोई किसान न बेचता हो अपना बैल 
या बच्चे को न मारता हो पीलिया या डायरिया 
या छोटी माता - बड़ी माता के गुस्से के शिकार न होते हो बच्चे 
बच्चियां आज भी मारी जा रही हैं जन्मते ही या उस से पहले भी 
कई औरते आज भी गायब हो रही हैं नहीं लौटने के लिए 

ऐसे में लगता है 
हर दिन ही है मेरा जन्मदिन 
तारीख , महीना और साल से परे ! 

फिर एक सवाल खुद से पूछता हूँ -
कौन करेगा मेरे जन्मदिन को 
अपने डेटाबेस में शामिल ?