१.
होना ही था
जंगलों को तबाह
देने के लिए रास्ता
सडको को /राजमार्गों को
अलग बात है यह
पगडण्डी नहीं मांगती बलिदान
बिठाती है सामंजस्य .
२.
होना ही था
खेतों से विस्थापन किसानो का
देने के लिए कारपोरेट किसानी को स्थान
सोचने की बात है यह
कैसे कर लेता है आत्महत्या
हर दिन जूझने वाला किसान
३.
होना ही था
अपनों के बीच 'स्पेस' की मांग
अपने अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व के लिए
आज महत्वपूर्ण है यह
निजता भारी पड़ रही है
अपनेपन पर
४.
होना ही था
तुम ले लोगी अलग रास्ता
एक मोड़ पर आकर
क्योंकि तुम्हे नहीं दिखता
रौशनी के बीच का अँधेरा
मुझे अच्छी लगती है
अँधेरे की रौशनी
होना ही था ...सार्थक चिंतन ...
जवाब देंहटाएंनिजता भरी पड़ रहा है..... इसमें शायद "भारी " आना चाहिए था ...
अंधेरा भी खुली आंखों से, खुली आंखों को दिखता है.
जवाब देंहटाएंगहरा चिन्तन सुन्दर रचनायेण। बधाई।
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति बेहतरीन ... विकास की कीमत चुकाते पेड़ ,रिश्ते ,खेत
जवाब देंहटाएंwaaah..... lekin ye sab kuch jo hua hai kya anawashyak nahi hai... ye sab jab nahi tha..jeevan tab bhi to sukhmay tha... behad khubsurat rachna hai arun sir...man men kai sawal paida karne wali....
जवाब देंहटाएंbehtarreen...
जवाब देंहटाएंvikash bhi keemat mangti hai na...!!
होना ही था
जवाब देंहटाएंतुम ले लोगी अलग रास्ता
एक मोड़ पर आकर
क्योंकि तुम्हे नहीं दिखता
रौशनी के बीच का अँधेरा
मुझे अच्छी लगती है
अँधेरे की रौशनी
गहन चिंतन..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
अच्छी प्रस्तुती. बेहतरीन विश्लेषण. यही प्रगति है ???
जवाब देंहटाएंअलग बात है यह
जवाब देंहटाएंपगडण्डी नहीं मांगती बलिदान
बिठाती है सामंजस्य ...
चारों बहुत ही शशक्त ... प्रभावी तरीके से अपनी बात दर्ज कराते हुवे ...
sundar prastuti.
जवाब देंहटाएंक्योंकि तुम्हे नहीं दिखता
जवाब देंहटाएंरौशनी के बीच का अँधेरा
मुझे अच्छी लगती है
अँधेरे की रौशनी...
Bahut sachchi aur achchi behatreen rachna...
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
सार्थक चिंतन की समेटे हैं रचनाएँ..... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंपगडंडियाँ विनाश नहीं करती हैं, विकास की पगडंडियाँ।
जवाब देंहटाएंbilkul alag dhang alag andaj aur content ki tajgi se bhari kavita jise padhne ka dil/man kata hai badhai brother
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा .............बिलकुल अलग सोच
जवाब देंहटाएंसोचने की बात है यह
जवाब देंहटाएंकैसे कर लेता है आत्महत्या
हर दिन जूझने वाला किसान
सही सवाल उठाया है आपने.
सभी कवितायें सुन्दरं हैं.
achchhi kavita...
जवाब देंहटाएंआज की परिस्थिति मे जो कुछ भी घटित हो जाय चौंकने/चौंकाने वाली बात नही होती। बुदबुदा कर रह जाते हैं…… "यह तो होना ही था"। सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंक्या लिखते हैं आप...
जवाब देंहटाएंसच बहुत ही सार्थक सोच है...
खूब सुन्दर...
अलग बात है यह
जवाब देंहटाएंपगडण्डी नहीं मांगती बलिदान
बिठाती है सामंजस्य .
सारी क्षणिकाएं बहुत ही प्रभावकारी हैं..
होना ही था
जवाब देंहटाएंतुम ले लोगी अलग रास्ता
एक मोड़ पर आकर
क्योंकि तुम्हे नहीं दिखता
रौशनी के बीच का अँधेरा
मुझे अच्छी लगती है
अँधेरे की रौशनी gahan bhav...andhere ki roshani...shashakt ehsas...
सारी क्षणिकाएं बहुत ही प्रभावकारी हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत पसन्द आया
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
pehli kshanikaa kaa kad baaki kshanikaon se kaafi badaa hai sir....
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachnaaye... वाह उम्दा विचार और भावपूर्ण ..
जवाब देंहटाएंhi apki kavita mujhe achhi lagi
जवाब देंहटाएं