सड़कें
कहीं नहीं पहुँचती
पहुंचाती है
यात्री को।
यात्री
सड़क के बिना
नहीं पहुच सकते
कहीं भी
मंजिल यदि साध्य है
सड़कें साधन।
सड़कें
धरती को नहीं छोड़ती
जो धरती को छोड़ते हैं
औंधे मुँह गिरते है
किसी न किसी मोड़ पर
मैं बने रहना चाहता हूँ
सड़क
तुम पाना अपनी मंजिल
यहीं से गुज़रते हुए।
कहीं नहीं पहुँचती
पहुंचाती है
यात्री को।
यात्री
सड़क के बिना
नहीं पहुच सकते
कहीं भी
मंजिल यदि साध्य है
सड़कें साधन।
सड़कें
धरती को नहीं छोड़ती
जो धरती को छोड़ते हैं
औंधे मुँह गिरते है
किसी न किसी मोड़ पर
मैं बने रहना चाहता हूँ
सड़क
तुम पाना अपनी मंजिल
यहीं से गुज़रते हुए।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’हिन्दी ग़ज़ल सम्राट दुष्यंत कुमार से निखरी ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक कविता, कितनी ही बार हूँ उन्हें भूल जाते हैं जो बिना कुछ अपेक्षा किये हमारा हॉंसला बढ़ते यहीं और बिना देकेः हमारे साथ चलते हैं . .
जवाब देंहटाएंवाह!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,सार्थक...
क्या बात है !!! सडक की सार्थक परिभाषा और सडक को भावपूर्ण उद्बोधन कमाल है | हार्दिक शुभकामना -
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