शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

हैती

प्रथम अश्वेत गणतंत्र
नए विश्व के समीकरण में
नहीं उतरता
कहीं खरा
क्योंकि उसे चुकाना है अभी
अपने स्वतंत्र होने का मूल्य
दो शताब्दी के बाद भी.

विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
समृद्धि  और आधुनिकता के राष्ट्र समूह के
आँचल में पल रहा है
यह दुनिया का सबसे गरीब देश
जो कभी केंद्र रहा था
प्राकृतिक संसाधनों और उनके व्यापार का
जहाँ थे कभी पहाड़, जंगल ही जंगल,
समंदर ही समंदर
और दोहन इस तरह हुआ कि
मौजूद है बस
बंजर भूगोल
बाढ़, भूचाल और
इन सबसे उपजी स्याह सिसकियाँ

उपनिवेशवाद को
पहली चुनौती देते हुए
जिस भूमि में बोया गया था
क्रांति बीज
वहीँ काटी जा रही हैं
भ्रष्टाचार की फसल

'जींस जेक्वस डेसलीन' का
नेतृत्व संघर्ष जिसने दी थी
नेपोलियन की सेना को भी मात
और जीता था स्वातंत्र्य 
लोकतंत्र की रख न सका नीव
और दूर रही सत्ता और सरोकार
आम आदमी से

सैकड़ो तख्ता पलट
उलट फेर के बीच जो साम्य रहा
वह था हाशिये पर
जन और जनहित
तभी तो अपने नाम का
ऊँचे पहाड़ो की भूमि का अर्थ रखने वाला
बौना है नए विश्व समीकरण में
और गिरफ्तार है
नव-उपनिवेशवाद के शिकंजे में
विश्व का प्रथम अश्वेत गणतंत्र -हैती

22 टिप्‍पणियां:

  1. यह दुनिया का सबसे गरीब देश
    जो कभी केंद्र रहा था
    प्राकृतिक संसाधनों और उनके व्यापार का
    जहाँ थे कभी पहाड़ए जंगल ही जंगल
    समंदर ही समंदर
    और दोहन इस तरह हुआ कि
    मौजूद है बस
    बंजर भूगोल
    बाढ़ए भूचाल और
    इन सबसे उपजी स्याह सिसकियाँ

    विश्व का प्रथम गणतंत्र हैती की व्यथा को आपने शब्दों में बखूबी बांधा है।
    आपकी कविता के विषय लीक से हटकर होते हैं।...शुभकामनाएं।

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  2. आशा है हैती अपना हक और कद जल्‍द हासिल करेगा.

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  3. जो हमे भी नही पता था वो सब बता दिया…………सुन्दर चिन्तन्…………मंज़िल जल्द नसीब हो।

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  4. अविधा का काव्य. मौलिक भावनाएं बड़े ही क्षोभ के साथ मुखरित हुई हैं.

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  5. तभी तो अपने नाम का
    ऊँचे पहाड़ो की भूमि का अर्थ रखने वाला
    बौना है नए विश्व समीकरण में
    और गिरफ्तार है
    नव-उपनिवेशवाद के शिकंजे में
    विश्व का प्रथम अश्वेत गणतंत्र -हैती

    बहुत ही मार्मिक और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति..वहाँ भी हालात सुधारें यही कामना है..

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  6. बहुतों का दुखड़ा अपने में समेटती ये कविता समय के साथ गिनती के देशों की दादागिरी के बोज़ तले दबे हैती के बहाने बहुत कुछ इंगित करती है.अतीत में नीरवता थी जहां वही अचानक नहीं वरन हमारे सामने ही उग आई है ये विश्वव्यापी समस्याएँ कुक्कुरामुत्तों के मानिंद.और हम गूंगे बने हैं आज भी,हमेशा की तरह .
    मानों बस में नहीं अब कुछ हमारे

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  7. राष्ट्रों के भी व्यक्तित्व होते हैं।

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  8. बिहार खनिज सम्पदा के भंडार पर बैठकर भी देश भर में फैले रिक्शा चालकों और मज़दूरों के लिये ही जाना जाता रहा...नालंदा, विक्रमशिला और आधुनिक समय में एक्स.एल.आर.आई.,बी.आई.टी. मेसरा, आई.एस.एम. धनबाद के बावजूद भी अनपढ़ होने का पर्याय बना रहा...और अब तो बँटवारे के बाद ये सब उधर (झारखण्ड) की कथा व्यथा बन गए हैं.. बिहार के लिए बचा बाढ़, सूखा और नक्सलवाद से ग्रस्त पूरी लाल पट्टी!!

    हैती देश के अंदर भी हैं! लेकिन जैसे परिवर्तन की लहर बहनी शुरू हुई है, शायद हैती के भी दिन बहुरें!!

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  9. @सलिल जी

    आपकी टिप्पणी कविता को नए सिरे से देखने के लिए.. पढने के लिए.. समझने के लिए कहती है..

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  10. दुनिया भर में यही हाल है..... इसी सच का अहसास कराती है आपकी कविता ....

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  11. • इस कविता में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के शोषण के साथ अधुनिकता और प्रगतिशीलता की नकल और चकाचौंध में किस तरह प्रगतिशील देशों की ज़िन्दगी घुट रही है प्रभावित हो रही है, उसे आपने दक्षता के साथ रेखांकित किया है। बिल्कुल नई सोच और नए सवालों के साथ पूंजीवादी ताक़तों और नवौपनिशवादी शक्तियों की चालों और संघर्ष की मौज़ूदा जटिलता को उजागर कर आपने सोचने पर विवश कर दिया है।

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  12. उपनिवेशवाद पर पहली बार कविता पढ़ी ।

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  13. विश्व की याद कर उनमे से सबसे गरीब देश को याद कर उसके प्रति अपने एहसासों से बहुत मार्मिक चित्रण कोमल हृदये ही कर सकता है जिसके दिल मै गरीब जनता के प्रति प्यार हो !

    बहुत सुन्दर रचना !

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  14. प्राकृतिक आपदा का शिकार हैती में सबकुछ सुकून भरा हो जाये , यही प्रार्थना है।

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  15. कितने प्रभावशाली और सार्थक ढंग से बात रखी है आपने .....

    बस यही भय लगता है की जिस राह भारत चल रहा है,कहीं वहीँ जाकर न पहुँच जाए...

    इतिहास सीखने और सम्हालने के लिए होता है,किताबों में सहेज रखने के लिए नहीं...काश कि लोग इस सबसे सबक लें...

    अति प्रभावशाली इस रचना के लिए आपका साधुवाद...

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  16. बहुत ही मार्मिक और ज्ञान वर्धक प्रस्तुति..

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  17. पहली चुनौती देते हुए
    जिस भूमि में बोया गया था
    क्रांति बीज
    वहीँ काटी जा रही हैं
    भ्रष्टाचार की फसल

    bahot khub...
    sarthak...

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  18. ऊँचे पहाड़ो की भूमि का अर्थ रखने वाला
    बौना है नए विश्व समीकरण में
    और गिरफ्तार है
    नव-उपनिवेशवाद के शिकंजे में
    विश्व का प्रथम अश्वेत गणतंत्र -हैती bahut hi dukhad hota hai ek smaridh rashtra ka akushal netrutva me yu bikhar jana....haiti uska udaharan hai..

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  19. कई प्रश्नों पर सोचने को विवश करती, बिलकुल अलग सी.. एक सार्थक कविता..

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