बात 2004 की है। घर बन रहा था। ज्योति दिन रात लगी रहती थी मजदूरों-ठेकेदारो के संग। मैं फ्रीलांसिंग पर फ्रीलांसिंग किये जा रहा था पैसे के लिए। बैंक लोन कम पड़ गया था। दीवार छत का काम गंगा प्रसाद कर रहा था। मेरी ही उम का था। और लकड़ी यानि दरवाजे चौखट खिड़की का काम बैजनाथ शर्मा कर रहे थे। उनकी उम्र मुझ से कोई दस पंद्रह साल अधिक रही होगी। दोनों ही बिहार के थे। मेरे जिले के पास के ही। समस्तीपुर से कट कर बना जिला रोसड़ा।
गंगा प्रसाद बहुत मेहनती था। इंजीनियर जैसा दिमाग था उसका। आर्किटेक्ट को भी समझा देता था कई बार। एक बार हमसे मिलवाने के लिए समस्तीपुर से अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर आया। अच्छा लगा था हमें। ज्योति ने उसके बच्चे और पत्नी को कपडे आदि देकर विदा किया था जैसे रिश्तेदारो को करते हैं। अपने बच्चे को पढ़ाने के बारे में बहुत चर्चा करता था। बाद में साथ चाय पीने से लेकर खाने भी साथ लगे थे। चार पांच महीने में एक चक्कर लगा ही लेता है। आज भी। इधर ठेकेदारी चल पड़ी है उसकी। पिछले रविवार को चार हज़ार फुट का लिंटर डाला है। फोन पर खुश होकर बताया था उसने।उसकी ख्वाहिश थी हीरो हौंडा की बाइक लेने की। लेकिन जब लेने लगा तो हीरो और हौंडा कम्पनियाँ अलग हो चुकी थी। बहुत कन्फ्यूज़्ड था गंगा प्रसाद फिर मैंने उसे इन कार्पोरेट मिलान और विलय एवं विच्छेद की कहानी बताई। जब उसने बाइक खरीदी तो सबसे पहले मुझे दिखने आया। उसका बेटा नवोदय विद्यालय में पढ़ रहा है। सातवी में। पिछले साल हज़ारों बच्चो के बीच उसका चयन हुआ था। उपकार प्रकाशन की गाइड मैंने ही खरीद कर दी थी जब फ़ार्म भरने पिछले साल गाँव जा रहा था। गंगा बहुत ईमानदार और मेहनती था। आम मजदूरों से अलग थी उसकी आदतें जैसे बीड़ी नहीं पीना काम चोरी नहीं और इंजीनियर के साथ बहसबाजी करके चीज़ो को गहराई से समझ लेना।
दूसरी मंजिल की छत डलने वाली थी। सीमेंट वाला ट्राली सीमेंट को बीच सड़क पर छोड़ गया रात को। मजदूर सब भाग गए थे। मैं और गंगा बचे थे। दोनों ने मिलकर साठ बोरी सीमेंट को उठा कर रख दिया था गोदाम के भीतर। आश्चर्यचकित था वह कि मैं कैसे पचास किलो की सीमेंट की बोरी उठा पा रहा हूँ। उसे मेरे भीतर एक मजदूर भाई दिखा।
अब गंगा मुझे मजदूर या ठेकेदार नहीं लगता। दोस्त बन गया है। मजदूर दिवस पर गंगा प्रसाद को बहुत बहुत शुभकामनायें और अपने भीतर के मजदूर को भी। ऐसे कई मजदूर दोस्त हैं मेरे। उन सबको सलाम ।
सलाम !
जवाब देंहटाएंHello I'am Chris !
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Chris
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-05-2015) को "सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं" (चर्चा अंक-1963) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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श्रमिक दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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श्रमिक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें. बहुत सुंदर मार्मिक प्रसंग एक दम सटीक. शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंहमारा भी सलाम ...
जवाब देंहटाएं....... सुंदर सटीक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं