अक्सर तुम
हंसती थी और
कहती थी
'शून्य बटा सन्नाटा"
मैं महसूस कर रहा हूँ
इसे इस वक्त !
सूने खलिहान में जो पसरा हुआ है शून्य
वही सन्नाटे में बदल गया
और ओसारे पर
टंगी हुई है कील पर
उसकी कमीज अब भी
जिसने टांग लिया खुद को
मुहाने के पीपल से
महाजन के अगली दस्तक से पहले
यही शून्य फैला हुआ है
बड़ी सोसाइटी की लिफ्ट में
जो सन्नाटे के साथ ले जाता है
एक बिंदास लड़की तो तेईसवीं मंजिल पर
वह कभी नहीं लौटती है
धप्प की जोर आवाज़ से
टूटती है तन्द्रा , फिर से शून्य हों जाने के लिए
मेट्रो तेजी से बढ़ जाती है
एक शून्य की तरह और
छोड़ जाती है एक सन्नाटा
उस बूढ़े के साथ जो आया है
महानगर में मिलने अपने बेटे से
और ढूंढ रहा है पता
ऐसे कई शून्य है मेरे इर्द गिर्द
और चारो ओर मेरे
एक शून्य की तरह और
छोड़ जाती है एक सन्नाटा
उस बूढ़े के साथ जो आया है
महानगर में मिलने अपने बेटे से
और ढूंढ रहा है पता
ऐसे कई शून्य है मेरे इर्द गिर्द
और चारो ओर मेरे
पसरा हुआ अनन्य सन्नाटा
और इनके बीच मैं
विभाजक रेखा की भांति
टंगा हुआ हूँ
अनंत की तरह !
बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंखो जाना शून्य में आसान है पर उससे बाहर आना बेहद मुश्किल
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
हमारे एक मास्टरजी बात बात पर सिफ़र बटे सन्नाटा बोलते थे... हम लोग उस समय केवल हंस पडते थे....
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन अप्रवासी की नज़र से मोदी365 :- ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
अंतर्मन को झकझोरता सन्नाटा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
हर इंसान का जीवन शून्य बन कर ही रह गया है ...
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