अभी अभी
मैं मिल कर आया हूँ
एक पागल विज्ञानिक से
जो देश के एक प्रयोगशाला में
बनाता हुआ एक तकनीक
चुक गया
और सात समंदर पार से आकर एक बाज
छा गया देश पर
अभी अभी
मैं मिलकर आया हूँ
एक पागल किसान से
जो खेतो में हत लिया है
प्राण
और सात समंदर पार से आकर एक बीज
अंकुरा रहा है विषवेल खेतों में
अभी अभी
मैं मिलकर आया हूँ
एक पागल कामरेड से
जो भट्टी में डाल दिया गया था
बड़ी कंपनी की बड़ी फैक्ट्री बड़े फर्नेस में
और सात समंदर पार से आयातित नीतियां
धमका रहा था
कांट्रैक्ट मजदूरों को
अभी अभी
मैं मिल कर आया हूँ
घुटते हुए समय से !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-05-2015) को "उम्र के विभाजन और तुम्हारी कुंठित सोच" {चर्चा - 1983} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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bahut bahut dhanyvad roopchandra ji
हटाएंहाँ कुछ पागलों के होने से ही समय बचा हुआ भी लगता है कहीं थोड़ा सा ।
जवाब देंहटाएंसटीक चोट करती सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअभी अभी
जवाब देंहटाएंमैं मिल कर आया हूँ
घुटते हुए समय से ............sach hai
वाह बहुत खूब...एक सार्थक तहरीर...
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