सरोकार
गुरुवार, 14 मई 2015
हताश समय
दरवाज़े सब हैं
बंद
खिड़कियों पर
मढ़ दिए गए हैं
शीशे
हवाओं के लिए भी
नहीं है कोई सुराख़
और रौशनी कृत्रिम हो गई है
आसन्न है अंत
हताश समय है यह
2 टिप्पणियां:
सुशील कुमार जोशी
गुरुवार, मई 14, 2015
सत्य !
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दिगम्बर नासवा
रविवार, मई 17, 2015
हताश समय जल्दी ही बीत जाता है ... रौशनी है बाहर खिडकियों के ...
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सत्य !
जवाब देंहटाएंहताश समय जल्दी ही बीत जाता है ... रौशनी है बाहर खिडकियों के ...
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