शनिवार, 18 जून 2011

मैं जंगल की महुआ : कुछ क्षणिकाएं



१.
पत्तों की थाली
कंकडों से भरा लाल मोटा भात
करेले का अचार
नदी का मटमैला पानी
और बन्दूक साथ
महुआ मेरा नाम,
खबर है कि
सरकार बना रही है
हमसे युद्ध की नीति

२.
महीनो में एक बार
माथे में तेल
चोटी में लाल फीता
हरा खाकी पहिरन
और कंधे पर लटकती  बन्दूक
आँचल की तरह
महुआ का यौवन और प्यार
सुना है कि
सरकार तैयारी कर रही है

हमसे करने आँखें चार

३.
भूख से
मरी थी बहिन
विस्थापन से बाबा
मलेरिया से
मरी थी माँ
एनकाउन्टर में भाई
और कुपोषित रही
मैं महुआ
खबर है कि
सरकार जुटी है
लेने को लोहा मुझ से


अपने लोग
अपना गाँव
अपनी नदी
अपने खान
को कहना अपना
सिद्ध हुआ है
मेरा जुर्म
खबर है कि
सरकार के वकील तैयारी कर रहे हैं
हमसे लड़ने को मुकदमा

25 टिप्‍पणियां:

  1. महुआ जैसी लडकियों पर जो सरकार की गलत नीतियों का शिकार हो जंगल की महुआ बन गयीं है ..उन पर बहुत अच्छी रचना ... विचारणीय

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  2. शांति के लिये अंतिम विकल्प शायद युद्ध ही है
    महुआ के माध्यम से सरकारी नीतियों और विसंगतियों पर करारा प्रहार

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  3. शायद ऐसी परस्थितियों पर ध्यान जाए जिससे महुआ जैसी लड़किया ऐसी राह पर चलने पर मजबूर हो जाती हैं. कोई इतनी आसानी से ऐसा मार्ग नहीं चुनता.

    सुंदर कविता के माध्यम से आपने एक गंभीर विषय को उठाया है. शुभकामनायें.

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  4. अनर्थ का हर हाल में विरोध होना ही चाहिए, समर्थन नहीं|

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  5. छोटी छोटी चाह हमारी,
    नहीं युद्ध की राह हमारी।

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  6. जंगल में महुआ की क्षणिकाएँ बहुत अच्छी लगी।
    --
    पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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  7. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  8. भाई अरुण जी अद्भुत कविता के लिये आपको बधाई और शुभकामनाएं

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  9. पितृ-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

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  10. महुआ की व्यथा से उपजी कविता उन परिस्थितियों को दर्शा रही हैं जो सीधे सादे लोगों को हथियार उठाने पर विवश करती हैं ...
    सार्थक अभिव्यक्ति !

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  11. बेहतरीन लगे लिखे हुए हर लफ्ज़

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  12. महुआ के माध्यम से बहुत सी आंचलिक समस्याओं की तरफ ध्यान दिलाने का प्रयास लाजवाब है ...

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  13. बहुत सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति|

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  14. नक्सलवाद पर संभवतः मेरे द्वारा पढ़ी जा सकी सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक .बधाई अरुणजी

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  15. महुवा की आवाज और दर्द को आपने बखूबी उकेरा है..बहुत गहरे से आपने उनका दर्द कविता से हम तक पहुचाया है.. आभार

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  16. उम्दा एवं बेहतरीन क्षणिकाएं।

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  17. चारो क्षणिकाएं बहुत अच्छी.

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  18. बेहतरीन क्षणिकाएं और समस्या की तरफ ध्यानाकर्षण भी बहुत सुन्दर तरीके से किया गया है

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  19. झकझोरते हुए गंभीर प्रश्न पर विचार करने को बाध्य करती अति प्रभावशाली रचना....

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  20. अपने लोग
    अपना गाँव
    अपनी नदी
    अपने खान
    को कहना अपना
    सिद्ध हुआ है
    मेरा जुर्म
    खबर है कि
    सरकार के वकील तैयारी कर रहे हैं
    हमसे लड़ने को मुकदमा

    गहन भाव समेटे ...सशक्‍त रचना ।

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  21. भूख से
    मरी थी बहिन
    विस्थापन से बाबा
    मलेरिया से
    मरी थी माँ
    एनकाउन्टर में भाई
    और कुपोषित रही
    मैं महुआ
    खबर है कि
    सरकार जुटी है
    लेने को लोहा मुझ से
    ....
    महुआ कि चिंताओं में भी बराबर खड़ा रहने के लिए धन्यवाद भाई जी !

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