गुरुवार, 29 मार्च 2012

उन्हीं के लोग



चल रही  है
जोरदार बहस 
जोर जोर से चीखते हुए
लोग सुनवाना चाहते हैं
मनवाना चाहते हैं बात

उन्हीं  के वही लोग
बाँट रहे हैं
विज्ञप्तियां 
जारी कर रहे हैं
वक्तव्य 
पुष्टि कर रहे हैं
जोरदार बहस की 

उन्हीं के कुछ लोग
बैठे हैं
अखबारों में 
मोटा मोटा चश्मा चढ़ाये 
टी वी पटल पर भी 
कब्ज़ा है 
उन्हीं लोगों का 
उनकी  आँखों पर भी है
वैसा ही मोटा मोटा चश्मा 
जिनसे छूट जाती हैं
साधारण मोटी बातें 

उन्हीं के लोग 
घुस गए हैं
हमारे घर आँगन में 
बाँट दिया है 
कुछ को 
बहस के इस ओर,
कुछ को 
उस ओर 

बहस 
हमारे बारे में हैं 
हम भूखे क्यों हैं !
हमें क्यों नहीं रोटी मिली!
हमारे पेड़ क्यों कट गए !
हमारे हिस्से की जमीन क्यों छिन गई !
कितने में होगा हमारा गुज़ारा !
नए नए विषय उठाते हैं
उन्हीं  के लोग 

कहते हैं
वर्षों से जारी है बहस 
मोटे हो रहे हैं 
उन्हीं के लोग 
कर हम पर बहस

20 टिप्‍पणियां:

  1. आपके बारे में ही बात, आपका ही धन, आपकी ही चिन्ता।

    जवाब देंहटाएं
  2. बड़े हमारे ।

    उनकी खैनी का महत्व, अपनी कहनी व्यर्थ ।

    गई भैंस-मम पानी में, इन बहसों के अर्थ ।

    जवाब देंहटाएं
  3. यही तो त्रासदी है...!
    बेहद सटीक बात कही गयी है कविता में!

    जवाब देंहटाएं
  4. क्या कहूँ इस लाजवाब पोस्ट के लिये…………हकीकत बयाँ कर दी।

    जवाब देंहटाएं
  5. और ऊपर से तुर्रा ये कि आप ही ने तो चुन कर भेजा है हमें...

    कालिन्स और दामनीक कि किताब फ़्रीडम एट मिडनाईट की पंक्तियाँ जो उन्होने ब्रिटीशों को लक्षित कर लिखी थी भारतीय रहनुमाओं के परिप्रेक्ष्य मे आज तब से ज्यादा प्रासंगिक लगती है, (जैसा याद आ रहा इस वक़्त) “वो प्रतिदिन भारतियों का भला करने निकलते थे... भारतियों से बिना पुछे कि उनकी भलाई किसमे है....”

    जबर्दस्त रचना।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  6. पक्ष और प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
    बात इतनी है कि कोई पुल बना है।
    एक ओर बहस पे बहस, दूसरी ओर तारीख पे तारीख.. कोई ईमानदारी से आकाश में सुराख करने को पत्थर उछालना ही नहीं चाहता.. एक कंकड भी उठाया होता तो बहस बेमानी हो जाता!!

    जवाब देंहटाएं
  7. मौज कर रहे हैं उन्ही के लोग - अच्छी प्रस्तूति

    जवाब देंहटाएं
  8. सामयिक और सामाजिक सोच,आला दर्जे की कविता !

    जवाब देंहटाएं
  9. साधारण और असाधारण की लड़ाई है और रहेगी ...
    शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  10. कडुवे सच को लिखा है अरुण जी ... बहस पे बहस हो रही है और आम आदमी पे हो रही है और आम आदमी ही मर रहा है ...

    जवाब देंहटाएं
  11. वाह.............
    बढ़िया कटाक्ष...........

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  12. वाह!!!!!

    बेहतरीन कटाक्ष.................

    टिप्पणी स्पाम में जा रही है सर...

    सादर
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  13. ये शाश्वत बहस है, इसीलिए ज़ारी है।

    जवाब देंहटाएं
  14. लाजवाब कटाक्ष....बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं