पिता अब नहीं हैं
नहीं है मां भी अब
ऐसा तो कह नहीं सकते
क्योंकि वे हैं अब
अपनी वसीयतों में
दस्तावेजों में।
शायद रह जाता है
यही शेष
दस्तावेज
मैं रहना चाहूंगा शेष
अपनी कविताओं में।
कौन कितना शेष बचेगा कहां रह जाएगा किस रूप में समय को पता होता है बस :) सुन्दर
चंद लाइनों में कितनी भावनाएं समेट दी है आपने, दिल को छू गई❣️ thanks for sharing
कौन कितना शेष बचेगा कहां रह जाएगा किस रूप में समय को पता होता है बस :) सुन्दर
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