मुझे लगता था कि
मेरे पास है समाधान
दुनियां भर की समस्याओं का
कि अगर मैं किसी देश के राष्ट्रपति से मिल लूं
तो रोक लूंगा उसे अपने पड़ोसी राष्ट्र पर बम गिराने से ।
मुझे लगता था कि
यदि कभी किसी दंगाई से मिला तो
उसकी तलवार के नोक पर
रख दूंगा एक गुलाब का फूल
और कहूंगा कि किसी को मारने से पहले देख ले अपनी जेब में रखी बेटी की तस्वीर एक बार
मुझे यकीं था कि वह दंगाई नहीं रहेगा फिर ।
मुझे यह भी लगता था कि
देश की वित्तमंत्री तक यदि पहुंच जाऊं मैं
तो समझा लूंगा उन्हें कि
सीमा पर तोप से कहीं अधिक जरूरी हैं
मेरे गांव के स्कूल में शिक्षक, पंचायत में अस्पताल
और वे थपथपा कर मेरी पीठ मान जायेंगे मेरी बात।
कितना गलत था मैं
जब मेरी कोशिशों के सब बीज खोखले निकले
अंकुरित नहीं कर पाया एक भी पौधा प्रेम और विश्वास का
भरोसे की कलम सूख गई नमी की कमी के कारण और
अपनी तमाम कोशिशों के लिए कहलाया मैं मसखरा ।
फिर कहूंगा, चाहे कोई सुने न सुने
मसखरों की बातें जो सुनती दुनियां
सीमाओं पर बाड़ नहीं होते
हाथों में हथियार नहीं होते
गुलाब की खेती होती
तलवारों की जगह हाथों में होते कलम
बस एक दिन किसी मसखरे के हाथों में दे दो दुनियाँ की बागडोर।
क्या जिनके हाथों में है वो मसखरे नहीं हैं ?
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