गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

अफगानिस्तान










भूगोल की किताबों में 
जरुर हो तुम एक देश
किन्तु वास्तव में
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
युद्ध के मैदान से

दशकों बीत गए
बन्दूक के साए में
सत्ता और शक्ति
परिवर्तन के साथ
दो ध्रुवीय विश्व के
एक ध्रुवीय होने के बाद भी
नहीं बदला
तुम्हारा प्रारब्ध 
काबुल और हेरात की 

सांस्कृतिक धरोहर के
खंडित अवशेष पर खड़े
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
रक्तरंजित वर्तमान से

बामियान के
हिम आच्छादित पहाड़ों में
बसे मौन बुद्ध
जो मात्र प्रतीक रह गए हैं
खंडित अहिंसा के
अपनी धरती से
विस्थापित कर तुमने
गढ़ तो लिया एक नया सन्देश
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
मध्ययुगीन बर्बरता से

जाँची जाती हैं
आधुनिकतम हथियारों की
मारक क्षमता 
तुम्हारी छाती पर
आपसी बैर भुला
दुनिया की शक्तियां एक हो
अपने-अपने सैनिको के 
युद्ध कौशल का
देखते हैं सामूहिक प्रदर्शन
लाइव /जीवंत
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
सामरिक प्रतिस्पर्धा से

खिड़कियाँ जहाँ
रहती हैं बंद सालों  भर
रोशनी को इजाजत नहीं
मिटाने को अँधेरा
बच्चे नहीं देखते
उगते हुए सूरज को
तितलियों को
फूलों तक पहुँचने  की
आज़ादी नहीं
हँसना भूल गयी हैं
जहाँ की लडकियां
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
फिल्मो/ डाक्युमेंटरी/ रक्षा अनुसन्धान के विषय भर से 

सदियों से चल रहा
यह दोहरा युद्ध
एक -दुनिया से
और एक- स्वयं से
सूरज को दो अस्तित्व कि 
मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा
खोल दो खिड़कियाँ
तुम अफगानिस्तान
इस से पहले कि
मिट जाए अस्तित्व
भूगोल की किताबों  से .

23 टिप्‍पणियां:

  1. अरुण जी! आपने आशा की खिड़की खोल दी है, और हम भी यह आशा रखते हैं कि यह मुल्क एक ख़ूबसूरत वादियों के रूप में जाना जाए,जैसा कि हमने फ़िल्म धर्मात्मा में देखा था या ख़ुदा गवाह में!न कि वैसा जैसा आज वो रियल लाइफ में है!!
    काबुल नदी में ख़ून की जगह फिर से एक पवित्र जल का प्रवाह हो,बस यही आशा है!!

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  2. अनूठे और अनछुए विषयों पर लिखी आपकी रचनाएँ हमेशा ही प्रभावित करती हैं उसी का सबूत है "अफगानिस्तान".

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  3. दुनियां, कुछ लोग कहते हैं संवर रही है। पर दुनिया के इस तरह संवरते जाने में एक विडंबना है| इस संवरती दुनिया में महज वे चंद देश है जिन्‍होंने पूरी दुनिया पर अपना साम्राज्य जमा रखा है। कई देश इन साम्राज्‍यवादी ताकतों के सामने घुटने टेक दिए और जिनके कारण ही चंद देश का अस्तित्व खतरे में है। जैसे अफ़ग़ानिस्तान, जो हाशिये पर पहुंचा दिया गया है और बहुत दयनीय स्थिति में रहने को अभिशप्‍त हैं।

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  4. अरुण जी! इस कविता में आपने भौगोलिक अफ़गानिस्‍तान के द्वारा संपूर्ण वर्तमान का चित्र खींचा है, धन्‍यवाद.

    भारत से कल कुछ लोग बाघा बार्डर पार करते हुए गाजा के लिये निकले हैं अमन का पैगाम लेकर ऐसे समय में आपकी ये कविता पढ़कर उनकी सनक पर फक्र हो रहा है।

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  5. सदियों से चल रहा
    यह दोहरा युद्ध
    एक -दुनिया से
    और एक- स्वयं से
    सूरज को दो अस्तित्व कि
    मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा...

    बहुत सार्थक अभिव्यक्ति ...

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  6. सदियों से चल रहा
    यह दोहरा युद्ध
    एक -दुनिया से
    और एक- स्वयं से
    सूरज को दो अस्तित्व कि
    मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा
    sanjeev ji ne sab kuch byan kar diya ....arun ji..

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  7. भारत की भी यही दशा ना हो जाए ...
    रात दिन इसी फिक्र में गुजरते हैं ...
    दूसरों के हाल पर क्या तरस खाएं ..!

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  8. सांस्कृतिक इतिहास रक्तपूरित वर्तमान और अनिश्चित भविष्य में बदल गया है।

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  9. काश ये कविता अफगानिस्तान के लोग पढ़ते तो शायद उन्हें ये एहाशाश होता कि किधर जा रहे हैं वो लोग.

    बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति.

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  10. सही में, अफगानिस्तान का नक्शा ही सामने रख दिया ....
    कविता सोचने पर मजबूर करती है..
    एक सफल प्रयास.

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  11. सांस्कृतिक धरोहर के
    खंडित अवशेष पर खड़े
    तुम अफगानिस्तान
    कुछ अधिक नहीं
    रक्तरंजित वर्तमान से

    बिल्कुल नए विषय पर नए अंदाज की कविता।

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  12. अरुण जी,
    हमेशा की तरह अलग और अछूता विषय लिया है आपकी पैनी दृष्टि वहाँ देख लेती है जहाँ हम जैसे आम इंसान देखते ही नही तो सोचना तो दूर की बात है……………यही आपकी अलौकिक क्षमता है जिसके हम कायल हैं………… कविता के माध्यम से अफ़गानिस्तान के हालात का सजीव और सटीक चित्रण किया है ।

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  13. arun ji kavita ka falak vyapak hai lekin aur shodh kee aavyashkta hai kavita ko gambhir banane ke liye...

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  14. कविता तो बहुत अच्छी है..बिलकुल अफगान की दशा को रेखांकित करती हुई...
    पर अफगान से ये शिकवा क्यूँ कि खिड़कियाँ खोल दो...देश तो वहाँ के लोगों से बनता है...और वे बिचारे वैसे ही पिस रहें हैं...और अपने देश की दुर्दशा से उतने ही दुखी हैं .
    वैसे कविता बढ़िया है..
    आप खालिद हुसैनी की "काईट रनर" और दूसरी किताबें जरूर पढ़ें

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  15. अफगानिस्तान के माहौल पर वहां के सत्ता धारियों को सोचने पर विवश करती सामयिक कविता,

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  16. खिड़कियाँ जहाँ
    रहती हैं बंद सालों भर
    रोशनी को इजाजत नहीं
    मिटाने को अँधेरा
    बच्चे नहीं देखते
    उगते हुए सूरज को
    तितलियों को
    फूलों तक पहुँचने की
    आज़ादी नहीं
    हँसना भूल गयी हैं
    जहाँ की लडकियां
    तुम अफगानिस्तान
    कुछ अधिक नहीं
    फिल्मो/ डाक्युमेंटरी/ रक्षा अनुसन्धान के विषय भर से कवि ने भौगोलिक विम्बों के सहारे वर्तमान की विद्रूपताओं पर कठोर प्रहार किया है. कवि का आक्रोश और विरल दृष्टि ही इस कविता का काव्य-सौन्दर्य है. विरोधी स्वर के बावजूद कविता पढने में सुन्दर लगती है. यह कविता पाठ्य-पुस्तकों मे शामिल करने योग्य है. जहां तक मैं ने अरुण जी की रचनाओं को पढ़ा है, यह उनकी सबसे पारदर्शी कविताओं में से एक है.

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  17. प्रभावी अभिव्यक्ति ....... विचारणीय पहलू को सामने रखती कविता....

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  18. काव्य रूप में अफगानिस्तान का सच बहुत सुन्दर तरीके से लिखा है आपने !

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  19. अरुण जी! सदियों से चल रहा
    यह दोहरा युद्ध
    एक -दुनिया से
    और एक- स्वयं से
    सूरज को दो अस्तित्व कि
    मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा...

    इस कविता में आपने भौगोलिक अफ़गानिस्‍तान के द्वारा संपूर्ण वर्तमान का चित्र खींचा है, धन्‍यवाद.

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  20. जब जब कोई भी ताक़त अपने आगे दूसरे को कुछ नही समझना चाहते उनका यही हाल होता है ...

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