मेरे मोहल्ले में
वह जो चौक पर लगाता है
पंक्चर की दूकान
वही जो शाम को लगा जायेगा
भुट्टे का खोमचा
उबले हुए अंडे थी ठेली
सब्ज़ियों की दूकान
वह हमारी कविताओं में है ,
हाँ, सही जानते हैं आप
उसे पढ़नी नहीं आती
पढ़नी भी आती है तो
कविता नहीं पढता वह
किताबे देने पर कहता है
सुना दो बाबूजी
मैं कहता हूँ,
कवि लिखता है
सुनाता नहीं है
वह हँसता है और गुनगुनाने लगता है
किसी फिल्म का प्रसिद्द गीत
पहली बार कविता ऐसे ही हारी होगी
जब किसी कवि ने सुनाने से मना किया होगा कविता
किसी कम पढ़े-लिखे को
आओ , बैठो
सुनाता हूँ मैं एक कविता।