गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

हिसाब रख ना सका

करवटों में गुजार दी उमर
एक उलझन भी सुलझा ना सका
खोने पाने की जद्दोजहद में
वरसों का हिसाब रख ना सका

पत्ते गिनते रहे पतझड़ के
बदलते मौसम को परख ना सका
चाँद बदलता है हर रोज़
दिल को ये समझा ना सका

माथे पर सिलवटें आयी हैं उभर
हाथ मलता रहा खबर कर ना सका
पौधे कब बन गए पेड़
माली को पता लग ना सका

हम लौट आयेंगे जल्द ही
उनसे इतना इन्तजार हो ना सका
दीवारें उग गई हैं दिलों के बीच
बच्चों को ये सीख दे ना सका

करवटों में गुजार दी उमर
एक उलझन भी सुलझा ना सका

4 टिप्‍पणियां: