मंगलवार, 11 मई 2010

ताज से लौट कर

लौट कर
ताज से
टूट गया है
भ्रम
कि
प्रेम का
ए़क मात्र
प्रतीक है
ताज

ताज
सुंदर नहीं
उस चेहरे से
जिसे देख कर
शुरू होने वाला
हर दिन
जिंदगी से लड़ने का
देता है हौसला

ताज
नरम नहीं
उन नन्ही हथेलियों से
जिसके स्पर्श मात्र से
मिट जाती है
माथे की सिलवटें
हर दिन

ताज के
प्रांगन में
अमरुद का
वह पेड़ नहीं
जिस पर
दिन भर
फुदकती है गौरैया
और करती है
अटखेली
गिलहरी
अपने पूरे परिवार के साथ

हाँ
ताज के
पीछे बहने वाली यमुना
जरुर
लगती है अपनी सी
संघर्षरत
बचाती अपना
अस्तित्व

14 टिप्‍पणियां:

  1. मन की पवित्रता का परिचय देती सुंदर कविता

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  2. दिल रोया है उन अजीब लम्हों को याद करके ....

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  3. sir theek hai ki taaj me hamare rojmarra ke jivan ki tajagi nahi kintu aisa bhi mohbhang kyon? yamuna ki swayam se tulna sateek hai.

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  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. "ताज के
    पीछे बहने वाली यमुना
    जरुर
    लगती है अपनी सी
    संघर्षरत
    बचाती अपना
    अस्तित्व"

    Taj ka sambal le use betaj kar diya kyonki wah astitwv ki ladai me kisi ka saath nahi de pata hai.achchi prastuti.

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  6. वाह !!....बहेतरीन प्रस्तुती ......

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  7. हाँ
    ताज के
    पीछे बहने वाली यमुना
    जरुर
    लगती है अपनी सी

    जहाँ जल है वहीं कल-कल है.
    सुन्दर भाव

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  8. Aaj shahjahan zinda hota to uska sir sharm se jhuk jata. Jiss tajmahal ko banwa kar ussne 20,000 majdoron ke hath katwa diye wo tajmahal kisi ki mohabat ka prateek nahi ho sakta , wo sirf ek makbara matr hi hai...

    Bahut umda rachna hai....

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  9. सुन्दर कविता है .पर मेरी शिकायत यह है कि कविता के समापन में इतनी जल्दी क्यों करते हो .ब्लॉग का माध्यम ऐसा hai जिसमे पाठक और रचनाकार के बीच कोई सम्पादकीय हस्तछेप नहीं होता इसलिए ब्लॉग पर रचना डालने से पूर्व रचना को खुद जांच लेना ज़रूरी हो जाता है .अधैर्य ठीक नहीं .

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  10. यमुना तो खुद ही जूझ रही है अपना अस्तित्व बचाने के लिए .......

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  11. एक यमुना ही नहीं सारी नदियाँ ही संघर्षरत हैं बहुत खूबसूरती से कह डाला है अपना प्यार और प्रकृति से प्यार

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  12. ताज के पीछे बहती यमुना पर आपकी पंक्तियाँ बहुत अच्छी और सामयिक हैं...हर नदी आज इसी तरह अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है...
    इक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
    बस गया इन्सां तो नाली हो गयी
    नीरज

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