सोमवार, 17 मई 2010

तुमसे

१.
हर रंग
तुम में जाकर
जाते हैं
मिल
और
बन जाते हैं
स्वप्निल इन्द्रधनुष


हर राह
तुम तक
रही हैं
पहुँच
और
बन जाती है
मंजिल

३.
हर भाव
तुम्हारे लिए
हो रहे हैं
अंकुरित
और
बन रहे है
अभिव्यक्ति की
पौध


हर शब्द में
हो रही हो
तुम
विम्बित
और
रचा जा रहा है
काव्य


हर कल्पना
तुम से है
और
निर्मित हो रहा है
ए़क नया
संकल्प


हर स्वर
तुमसे है
झंकृत
और
गुंजित है
व्योम में
अभिनव संगीत

13 टिप्‍पणियां:

  1. हर कल्पना
    तुम से है
    और
    निर्मित हो रहा है
    ए़क नया
    संकल्प
    कल्पना का संकल्प बन जाना बहुत सकारात्मक है.
    इस 'तुम' को साधुवाद
    सुन्दर रचनाएँ

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  2. .........गुंजित है
    व्योम में
    अभिनव संगीत. sunder abhvyakti,

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  3. वाह भाई वाह। आपकी हर-हर गंगे का आनंद। बहुत अच्‍छी अभिव्‍यक्ति है।

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  4. हर कल्पना
    तुम से है
    और
    निर्मित हो रहा है
    ए़क नया
    संकल्प

    bahut sunder rachna, simplicity at its best... extremely nice..

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  5. behad bhavpurn aabhivyakti ,sahaj shabdon se reniassance

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  6. bahut khub likha
    हर भाव
    तुम्हारे लिए
    हो रहे हैं
    अंकुरित
    और
    बन रहे है
    अभिव्यक्ति की
    पौध

    जवाब देंहटाएं
  7. हर कल्पना
    तुम से है
    और
    निर्मित हो रहा है
    ए़क नया
    संकल्प

    हर एक कविता एक नया संकल्प दोहराती हुई एक नई दास्ताँ सुनाती है

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