शनिवार, 4 सितंबर 2010

फेल हो गए मेरे पहले शिक्षक

बाबूजी
आप थे पहले शिक्षक
आपने ही
परिचय कराया था
अक्षरों से
संस्कारों से
सभ्यता से
मिटटी से
खेत से
खलिहान से
और
अखबार से

लेकिन
दुःख है मुझे
बाबूजी, मेरे पहले शिक्षक
फेल हो गए हैं आप

आपको
याद हो या ना हो याद
मुझे याद है
आपने ही लगवाया था
अखबार
जो पहुचता था दो दिन बासी होकर
और
बांचते थे आप उसे
बंचवाते थे हम से भी
बहुत बड़े सपने पाल रखे थे
हमारे लिए
लेकिन
कहाँ खरे उतर पाए हम

बाबूजी,
मेरे पहले शिक्षक
फेल हो गए आप

समय के साथ
चलने को कहा था आपने
नहीं पता था आपको
दिशा इसकी उल्टी हो जायेगी
बाजार से
कहा था दूर रहने को
कहाँ पता था आपको भी कि
घर के भीतर
गुसलखाने में
रसोई में
घुस जाएगा बाजार
और
ऐसे में नहीं बचा पाया मैं
खुद को बाजार से
कठपुतली सा बन
बहुत सफल लिख रहा हूँ
और
विडंबना देखिये कि
मेरी सफलता के साथ ही
फेल हो गए आप
बाबूजी, मेरे पहले शिक्षक

जो धरती
आपके कंधे से चढ़ कर देखी थी
ना जाने कहाँ खो गई है,
जीवन का गणित
जो सिखाया था आपने
उसका उत्तर
अब मेल नहीं खाता ,
आपका बताया हुआ
इतिहास
अब बेमानी हो गया है ,
देश-दुनिया और समाज के
लिखे, अनलिखे संविधान में
हो गए हैं कई कई संशोधन
और
किसी मूल्य की बात करते थे आप
ना जाने कहाँ छूट गए हैं
जैसे आपका हाथ

हाथ के छूटने के साथ
फेल हो गए हैं आप
बाबूजी, मेरे पहले शिक्षक

21 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय भाई,
    ये हुई न बात ! दूसरों की तरह मैं जल्दबाजी में या आपको खुश करने के लिए "अच्छी है" कह देता तो?
    मुझे आपसे अच्छी कविता ही चाहिए थी|
    जो बात अनुभव और संवेदना के आधार पर हो, उसमें जान आती है...|
    इस कविता में जान है... अभिनन्दन |

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  2. अरुण बाबू बहुत समय से मैं आपको पढ़ रहा हूँ.हमेशा अपनी रचानों के बहाने एक विचार आप देते रहे है अपनी कविताओं के ज़रिये हमें आपकी विशिष्ठ शैली से मिलना होटा है,ये शैली चुराई नहीं लगती है.बहुत अच्छे से आगे बढ़ रहे हो.बस अब संग्रह रूप में इन्हें छपवा दें तो नेट के अलावा जो किताबी किडे हैं वे भी इन कविताओं का आस्वादन कर पायें..इस कविता में गुम होते मूल्यों पर बहुत अछा व्यंग किया है. पिताजी तो रहे नहीं मगर उनकी याद उनके फैल हो जाने के बाद भी उन्हें पास कर गई

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  3. आप भूल गए हैं दुनिया को परखने का यह नजरिया आपको बा‍बूजी ने ही दिया है। जब वे कहते रहे कि समय के साथ चलना,तो आप सोचते रहे कि यह होता क्‍या है? जब वे कहते रहे कि बाजार से दूर रहना,तब आपने सोचा होगा कि बाजार होता क्‍या है? इतिहास,गणित और देश दुनिया की जो परिभाषा उन्‍होंने आपको दी थी,वही तो औजार बना आपके नजरिए का। जिन मूल्‍यों की बात उन्‍होंने की,आप उन पर ही जीवन की कसौटियों को कस रहे हैं।
    तो शायद न तो बाबूजी फेल हुए हैं और न उनका छात्र। सच तो यह कि शिक्षक कभी फेल नहीं होता। फेल और पास तो हमेशा छात्र ही होता है। शिक्षक तो हमें कुछ न कुछ सिखाते ही हैं।

    बहरहाल कविता में कसाव की जरूरत है। कटपुतली नहीं, कठपुतली।

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  4. ना!

    बाबूजी कभी फेल हो ही नहीं सकते...अगर कुछ हुआ तो वो शिष्य से ही हुआ...विलक्षण भी शिष्य होता है और नाकारा भी...गुरु सिर्फ गुरु होता है जिसको कसने के लिए कसौटियाँ नहीं बनी...

    अच्छा लगा पढना..

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  5. आपने कविता के रूप में एक विचार दिया ...आज आप बाबूजी को कसौटी पर कास रहे हैं पर यह परख करने की शिक्षा भी तो बाबूजी से ही मिली है ....विचारणीय रचना ..

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  6. भारत के साधारण लोगों के जीवन-यथार्थ को बड़े ही कलात्मक ढंग से उजागर करने का प्रयास किया गया है।

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  7. babuji fail ho gaye rahte to hum un chijon ki talash se pare ho jate , yah talash ek bij hai , jo babuji ne andar rakha hai, banjar, dishahin dharti phir hari hogi

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  8. विचारणीय पोस्ट...सच कहा आपने आज सारे मायने...सारी शिक्षा फ़ैल हो जाती है, बाज़ार से उलटे लौट आती है.
    सुंदर रचना.

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  9. विचारणीय पोस्ट,बहुत गहरी बात कह गए आप. पर मैं तो अपने आप को ही दोष दूंगी. न बाबू जी की बात अनसुनी की होती न आज ये दिन देखते

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  10. bahi rajesh utsahi jee ne kavita me kasav kee jarurat batai thee.. mere anurodh par unhone kavita ko sampadit kiya hai.. mujhe naya swaroop achha laga.. aap bhi padhiye:
    " अरुण भाई,
    आपकी कविता को कसने बैठा तो यह रूप बना है। आप देखें। हां इसमें आपका अखबार नहीं आया है। मुझे लगता है गांव में दो दिन बाद पहुंचने वाले अखबार से आपकी बहुत सी बातें जुड़ी हैं। उसे आप अलग से कविता का विषय बनाएं। यहां मेरे हिसाब से वह फिट नही होता है। हो सकता है इस कविता की प्रेरणा वह अखबार ही रहा हो। फिर भी कई बार हम जब कुछ लिखने बैठते हैं,तो एक नई बात ही निकल आती है।


    आपको बता दूं कि मैं भी बचपन में ऐसी जगह रहा,जहां दो दिन नहीं एक सप्‍ताह के अखबार एक साथ मिलते थे।


    बहरहाल कविता का यह रूप आपको भाए तो आप उपयोग करें। अन्‍यथा....।


    शुभकामनाएं


    राजेश उत्‍साही





    बाबूजी
    आप ही थे पहले शिक्षक
    आपने ही
    मिटटी से
    खेत से
    खलिहान से
    परिचय कराया था



    परिचय कराया था
    अक्षरों से
    संस्कारों से
    सभ्यता से



    आपने कहा था

    समय के साथ चलना
    क्‍या आप नहीं जानते थे कि
    इसकी दिशा उलट जाएगी



    कहा था आपने

    बाजार से दूर रहने को
    क्‍या आपको पता नहीं था

    कि घुस आएगा बाजार घर में
    गुसलखाने तक में



    ऐसे में

    नहीं बचा पाया मैं
    खुद को बाजार होने से
    कठपुतली सा बन
    बहुत सफल लिख रहा हूँ

    और बिक रहा हूं



    और
    विडंबना देखिये कि
    मेरी सफलता के साथ ही
    फेल हो गए आप
    बाबूजी, मेरे पहले शिक्षक

    जो धरती
    आपके कांधे चढ़ कर देखी थी
    नजर नहीं आती,



    जीवन का गणित
    जो समझाया था आपने
    उसके सूत्र
    अब नहीं पहुंचाते उत्‍तरों तक



    आपका
    इतिहास
    अब बेमानी हो गया है ,
    देश-दुनिया और समाज के
    लिखे, अनलिखे संविधान में
    हो गए हैं कई कई संशोधन
    और
    जिन मूल्यों की बात करते थे आप
    वे अपना मूल्‍य ही खो बैठे हैं

    छूट गया है उनका साथ


    आपके हाथ की तरह ही





    बाबूजी
    आप ही थे पहले शिक्षक
    फेल हो गए हैं आप
    बाबूजी, मेरे पहले शिक्षक

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  11. उत्साहीजी ने अच्छा संपादन किया है,संपादन एक ऐसी कला है जिसे साधना सरल नहीं .कविता को सम्पादित करना ती और भी दुरूह कार्य है .उत्साही जी साधुवाद के पात्र हैं .अरुणजी को उनका आभारी होना चाहिये.

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  12. बाबू जी कभी फेल नही हो सकते .... जीवन के पहले शिक्षक को प्रणाम ....

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  13. kavita ko original roop mein padha phir sampadit roop mein bhi.....
    sach hai sudhar ki sambhavnayen kahaan khatm hoti hain!!!

    vicharniya tathya kavita ke pran hain!
    subhkamnayen!!!

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  14. कैसे कह दिया आपने कि बाबूजी फ़ेल हो गये अरे वो तो पास हो गये क्योकि आप मे वो सोच भर गये जो जानती है कि क्या गलत है और क्या सही …………………अब भी तो उसी को जी रहे हैं आप बस वक्त के साथ थोडे समझोते बेशक करने पडे हैं मगर फिर भी अपनी अन्तरात्मा को तो नही बेचा ना बस यही तो उनकी शिक्षा थी जिसे आपने समझा और जिया फिर कैसे कह दिया कि वो फ़ेल हो गये।

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  15. pita ko pahle shikashak ke roop me dekhna,unki shiksha ko apane jeevan ki kasouti banana ,bahut gahra vichar hai aur isi ko lekar aap aaj apne jeevan ki saflta asfalta map rahe hai,kahi ve moolya abhi bhi jeevit hai aapke andar,samay badla jeevan moolya badle par mool vichar abhi tak jeevit hai aur yahi babuji ki saflta ka raj hai ek shikshak ke roop me ek pita ke roop me.

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  16. विडंबना देखिये कि
    मेरी सफलता के साथ ही
    फेल हो गए आप ..

    badhiya hai !

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  17. बहुत गहरी बात कह गए आप.

    बाबूजी
    आप ही थे पहले शिक्षक
    फेल हो गए हैं आप
    बाबूजी, मेरे पहले शिक्षक

    जीवन के पहले शिक्षक को प्रणाम ....

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