मंगलवार, 28 सितंबर 2010

मत लौटाना मेरी नींद तुम

रह गई है
मेरी नींद
तुम्हारे पास,
तुम्हारे पहलू में
लौटाना मत
इस जिंदगी
आगे और
कई जिंदगी


नहीं चाहता मैं
देखूं सपने ,
चाहता हूँ
जागूं पूरी रात
और सोचूँ
तुम्हारे बारे में
जिऊँ
तुम्हारी हंसी को
और
सुनूं मैं
तुम्हारी धड़कनों को
और
सुनता रहूँ
सारी उम्र

मत लौटाना
मेरी नींद तुम

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना है!
    --
    सच तो यह है कि आप साठोत्तरी कविता को जीवित रक्खे हुए हो!

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  2. मत लौटाना
    मेरी नींद तुम
    नींद को लौटा लीजिये वे शायद सपनों में आयें.
    खूबसूरत रचना.. रूमानी सी

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  3. रह गई है
    मेरी नींद
    तुम्हारे पास,
    तुम्हारे पहलू में
    लौटाना मत
    इस जिंदगी
    आगे और
    कई जिंदगी

    apki iss rachna par wo geet yaad aa gaya, "mera kuch saman tumhare pass pada hai, sab bijwa do mera wo saman lauta do...

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  4. बडी रूमानी कविता लिखी है जिसमे मोहब्बत भी है और शिकायत भी और एक कशिश भी……………बहुत सुन्दर्।

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  5. बहुत सुंदर भाव युक्त
    रचना है...बहुत बहुत बधाई...

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  6. नये विचार इस समतल पर, प्रभावित करते विचार श्रंखला।

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  7. इसे पढ़ते हुए रोमांच, प्रेम, उदासी और प्रसन्‍नता से होकर गुजरना पड़ा!

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  8. mat laotana meri neend ...jagta rahu mahsoosta rahu har pal tumhe ..kavita ke liye pratikriya du...par in ehsason ko sirf mahsoos karne deejiye.....

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  9. एक बार किसी ने यह कहकर कि मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है वो भिजवा दो, दिल को चीर कर रख दिया था.. वो फहरिश्त आज भी रात के सन्नाटे में सवाल पूछती है. और आज आपने बाकी का चैन लूट लिया यह कहकर कि मेरी नींद मत लौटाना तुम. अरूण जी, एक दर्द क्या कम था जो आपने दूसरा दे दिया!!
    बेहतरीन!

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  10. जागूं पूरी रात
    और सोचूँ
    तुम्हारे बारे म


    बहुत सुन्दर अभिव्यक्त्ति भावों की.......

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  11. नहीं चाहता मैं
    देखूं सपने ,
    चाहता हूँ
    जागूं पूरी रात
    और सोचूँ
    तुम्हारे बारे में

    बहुत सुन्दर भाव ...

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  12. जागूं पूरी रात
    और सोचूँ
    तुम्हारे बारे में
    बहुत सुन्दर भाव हमेशा की तरह लाजवाब

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  13. नहीं चाहता मैं

    देखूं सपने ,

    चाहता हूँ

    जागूं पूरी रात
    और सोचूँ
    तुम्हारे बारे में.....
    bahut hi romantic prastuti...bahut sundar..aabhar..

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  14. bahut hi khoobsurat rachna
    नहीं चाहता मैं

    देखूं सपने ,

    चाहता हूँ

    जागूं पूरी रात
    और सोचूँ
    तुम्हारे बारे में.....

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  15. खूब, बहुत खूब। कवि हृदय के साथ यही समस्‍या है, दुनिया से अलग ही उसकी रीत होती है, दुनिया जिस नींद को बेताब है कवि उसे ठुकरा रहा है।

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