बुधवार, 6 जुलाई 2011

छेदवाली थैली

सूरज तो कब का
लौट चुका है
लेकिन वह अब
लौट रहा है
खाली हाथ
जो निकला था
उम्मीदों की थैली लिए
आज सुबह

नहीं पता था उसे
उसकी थैली में हैं
असंख्य छेद 
और छेद नहीं भरते हैं
सपनो से
आशाओं से
बहसों से
मुबाहिसों में    

छेद को भरने के लिए 
करना होता है 
एक युद्ध
युद्ध के लिए चाहिए
ऊर्जा
रणनीति
संसाधन
और जो होते संसाधन
भर ही ना जाते
उम्मीदों की थैली के छेद 

लौट कर
धो लेता है वह
दिन भर की जमी धूल
चेहरे से
दिल से
हाथ से
दिमाग से
वर्षों से धो रहा है
हाथ वह सुबह शाम दोपहर
लेकिन मिटा नहीं सका है वह
हथेली की रेखाएं 
ना ही हिला सका है 
किसी एक भी रेखा को
छेद उसकी थैली के
बढ़ते ही गए
उसकी उमर के साथ

इनदिनों
उसे लगा है कि
अचानक कई नए छेद
हो गए हैं
उसकी थैली में
और वे गुणित हो रहे हैं
जल्दी जल्दी
जब तक कि वह समझे
ये छेद
भर गए हैं थैले के चारो तरफ
थैली अपना स्वरुप ही
खो चुकी है
इन नए छेदों के कारण


फिर भी
वह हार नहीं माना है
उसके मानने से क्या होता है
हारा तो वह है ही
क्योंकि उसकी थैली के छेद
बढे हैं, बड़े हुए हैं दिनों दिन
बात अलग है कि
उसे किया जा रहा है प्रभावित कि
उसकी थैली के छेद
छेद नहीं हैं

वह समझ नहीं पा रहा
नए समय की भाषा
नई परिभाषा छेद की
वह रख देता है
अपनी थैली को
ताक पर
हर रात लौटने पर
थैली सो जाती है
थैली के छेद से 
सपने बाहर निकल कर
खेलने लगते हैं 
सपनो के साथ 
खेलने लगता है 
वह खुद भी,
अच्छा लगता है उसे
नींद में खेलना

सुबह होते ही
पलायन नहीं करने की
ठान लेता है वह
चल पड़ता है
लेकर छेद वाली थैली
उम्मीदों वाली
जबकि पता है उसे
थैली में हैं छेद 
रिस जाना है सबकुछ
धीरे धीरे

31 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद उम्दा कृति…………यही मानव का हौसला है कि रोज उम्मीदें बोता है मगर हौसला पस्त नही होता है…………शायद तभी कहा गया है उम्मीद पर दुनिया कायम है…………

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  2. सुबह होते ही
    पलायन नहीं करने की
    ठान लेता है वह
    चल पड़ता है
    लेकर छेद वाली थैली
    उम्मीदों वाली....
    यही उम्मीद तो उसका हौसला है...बहुत सुन्दर रचना..... बेहतरीन प्रस्तुति

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  3. आज का मानस खाली छेदों वाली झोली लिए ही फिरता है और आज की व्यवस्था लगातार उसकी झोली में नित नए छेद करती जाती है ... पर मानव पस्त नहीं होता .. सपने मरते नहीं हैं ...

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  4. वर्षों से धो रहा है
    हाथ वह सुबह शाम दोपहर
    लेकिन मिटा नहीं सका है वह
    हथेली की रेखाएं
    ना ही हिला सका है
    किसी एक भी रेखा को

    बहुत ही अच्‍छी पंक्तियां

    जवाब देंहटाएं
  5. सुबह होते ही
    पलायन नहीं करने की
    ठान लेता है वह
    चल पड़ता है
    लेकर छेद वाली थैली
    उम्मीदों वाली
    जबकि पता है उसे
    थैली में हैं छेद
    रिस जाना है सबकुछ
    धीरे धीरे

    umid kabhi nahi chodni chiye bhai

    bhaut khub

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  6. हाथ वह सुबह शाम दोपहर
    लेकिन मिटा नहीं सका है वह
    हथेली की रेखाएं
    ना ही हिला सका है
    किसी एक भी रेखा को
    छेद उसकी थैली के
    बढ़ते ही गए
    उसकी उमर के साथ


    उम्र के साथ छेदों का बढ़ना जीवन का अंतिम पड़ाव की तरफ बढ़ना है .....और अगर हमने मानव जीवन को साथक नहीं किया तो ...बेशक हम दुनिया में कुछ भी कर लें लेकिन हमारी थैली में छेद बढ़ते ही जायेंगे ....सुंदर प्रस्तुतिकरण ....आपका आभार

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  7. नहीं पता था उसे
    उसकी थैली में हैं
    असंख्य छेद
    और छेद नहीं भरते हैं
    सपनो से
    आशाओं से
    बहसों से
    मुबाहिसों में
    ...... itni gahri soch usi thaili se girti hai...bahut achhi rachna

    जवाब देंहटाएं
  8. बढ़ती मंहगाई के बीच जीने की जद्दोजहद की बड़ी प्रखर रूपरेखा खींची है आपने..

    मर्मस्पर्शी....सार्थक सटीक बेहतरीन...

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  9. और छेद नहीं भरते हैं
    सपनो से
    आशाओं से
    बहसों से
    मुबाहिसों में

    छेद को भरने के लिए
    करना होता है
    एक युद्ध
    bilakul sahee sandesh diyaa aapane. aabhaar.

    जवाब देंहटाएं
  10. आशा और कर्म से क्‍या नही सध जाता.

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  11. नित बनता है,
    नित रिसता है,
    यह ऊर्जा, उत्साह हमारा।

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  12. और जो होते संसाधन
    भर ही ना जाते
    उम्मीदों की थैली के छेद


    बहुत रहस्यमय और गहन है अरुण भाई.
    'छेदवाली थैली का भेद' मेरी समझ के बाहर है.
    संसाधन के अभाव में क्या कहा जाये.

    कोई बात नहीं,मेरे ब्लॉग पर चले आईयेगा.
    'सीता जन्म' पर अपने सुविचार प्रकट कर जाईयेगा.
    भगवान भला करेगा सबका.

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  13. सुबह होते ही
    पलायन नहीं करने की
    ठान लेता है वह
    चल पड़ता है
    लेकर छेद वाली थैली
    उम्मीदों वाली
    जबकि पता है उसे
    थैली में हैं छेद
    रिस जाना है सबकुछ
    धीरे धीरे
    Aah! Isse aage kya kahun??

    जवाब देंहटाएं
  14. हम सब की कहानी छिपी है आपकी इस रचना में...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  15. अरुण जी! बचपन में पढ़ा था, शायद बेनीपुरी जी की लाइन थी.. "किस्मत की फटी चादर का कोइ रफूगर नहीं." आज आपने ख्वाहिशों की थैली की छेद दिखाकर एक आम आदमी की वेदना सामने रख दी है.. जिन्हें रफूगर होना था वही चाकू लिए बैठे हैं थैली में छेद करने को!! हालत वही रहने वाले हैं! छू लिया दिल को आपने अरुण जी!!

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  16. सुंदर पंक्तियाँ ....सकारात्मक सोच की प्रेरणा देती हुईं .

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  17. छेद को भरने के लिए
    करना होता है
    एक युद्ध
    युद्ध के लिए चाहिए
    ऊर्जा
    रणनीति
    संसाधन
    और जो होते संसाधन
    भर ही ना जाते
    उम्मीदों की थैली के छेद

    ....सुबह होते ही
    पलायन नहीं करने की
    ठान लेता है वह
    चल पड़ता है
    विषम परिस्थितियों में जीने का जज्बा , सकारात्मक सोच बहुत खूब

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  18. आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

    जवाब देंहटाएं
  19. छेद को भरने के लिए
    करना होता है
    एक युद्ध
    युद्ध के लिए चाहिए
    ऊर्जा
    रणनीति
    संसाधन ||


    बहुत बढ़िया ||

    जवाब देंहटाएं
  20. हर सुबह एक आशा एक मुराद ले उगती है.......बहुत सुन्दर पोस्ट........शानदार|

    जवाब देंहटाएं
  21. ummid kya na kar dikhaye...chhed wali thailee me pani bharne ki koshish bhi ho sakti hai:)

    kya kahun, sir...aap to har baar ke tarah iss bar bhi niruttar kar gaye:)

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत सुंदर रचना
    क्या बात है।

    आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  23. सुबह होते ही
    पलायन नहीं करने की
    ठान लेता है वह
    चल पड़ता है
    लेकर छेद वाली थैली
    उम्मीदों वाली
    जबकि पता है उसे
    थैली में हैं छेद
    रिस जाना है सबकुछ
    धीरे धीरे...
    ....
    भाई जी ये दर्द तो कुछ अपना सा है ..कहीं ना कहीं हम सबके पास वो छेद वाली थैली है ना ?...भाई कैसे भरेगी ये थैली ! जब रोज हो छेद की परिभाषाएं बदलेंगी तो ??

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  24. जो होते संसाधन
    भर ही ना जाते
    उम्मीदों की थैली के छेद
    अरुण जी आपने आज के मध्यमवर्गीय-निम्न मध्यमवर्गीय मानव की वेदना को इस काविता के माध्यम से अभिव्यक्त किया है वह दिल को छॊती है। विडम्बना ही है जो श्रम करते हैं उनके भाग्य में हाथ धोना लिखा है पर लिखा को बदलना नहीं लिखा है... क्या कीजिएगा
    मुट्ठी बन्द किये बैठा हूं कोई देख न ले
    चांद पकड़ने घर से निकला जुगनू हाथ लगे

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  25. थैली में छेद हैं तो क्या ,आस भी तो है -
    न जाने किस तरह तो रात भर छप्पर बनातें हैं ,
    सवेरे ही सवेरे आंधियां फिर लौट आतीं हैं .
    जीवन संघर्ष कोंग्रेस के उस आम आदमी का जिसकी जेब से वह खुद ही हाथ डाले रहती है मुखरित है कविता में .सपनो के सौदागर सपने बेचतें हैं .ठगा जाता है आस का पंछी

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  26. सकारात्मक सोच बहुत खूब
    बहुत इमानदारी से मन की बात लिखी है ......!!
    एक एक शब्द काबिले तारीफ़ है ...!!

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