कोरोना महामारी के कारण उपजी नई परिस्थितियों में भारत का आर्थिक विकास दर घट कर एक से डेढ़ रह जाएगा। इस विकास दर का अर्थ लाखों लोगों का बेरोजगार होना, नौकरियां छिन जाना, लघु उद्यमों का बंद हो जाना, छोटे कारोबारियों का कारोबार घट कर आधा रह जाना है।
यह एक ऐसी आर्थिक परिस्थिति है जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी किसी विद्वान या अर्थशास्त्रियों ने।
कोरोना की यह कीमत बहुत बहुत अधिक होगी। दुनिया को इससे उबरने में कम से कम एक दशक तो लग जाएगा।
लेकिन इसका एक अलग पक्ष भी हो सकता है। जहां पश्चिमी देश में विकास का पहिया लगभग थम सा गया था उनके यहां विकास की गति थोड़ी बढ़ेगी। वे भी अपने यहां पहले से उन्नत स्वास्थ्य ढांचा को कोरोना के आलोक में देखेंगे। इस तरह वहां ग्रोथ के लिए कई सेक्टर खुलेंगे।
भारत के लिए यह चुनौती अलग तरह की होगी। नौकरियां नहीं होंगी तो समाज में अपराध बढ़ेंगे, सांप्रदायिक मतभेद के बढ़ने की आशंका अधिक होगी, सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से ऑटोमेशन की रफ्तार और बढ़ेगी,आदमी का स्थान रोबोट्स लेंगे।
सरकार को इतनी बड़ी जनसंख्या के पेट को भरने के लिए कृषि पर जोर देना होगा, छोटे कुटीर उद्योग पर फोकस करना होगा, अन्यथा स्थिति पर नियंत्रण रखना कठिन होगा। आयात को कम करने की चुनौती अलग होगी। निर्यात के क्षेत्र में संभावना क्षीण ही दिख रही होगी।
एक ही सुकून की बात है कि पूरी दुनिया किसी न किसी तरह से परेशान है।
यह एक ऐसी आर्थिक परिस्थिति है जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी किसी विद्वान या अर्थशास्त्रियों ने।
कोरोना की यह कीमत बहुत बहुत अधिक होगी। दुनिया को इससे उबरने में कम से कम एक दशक तो लग जाएगा।
लेकिन इसका एक अलग पक्ष भी हो सकता है। जहां पश्चिमी देश में विकास का पहिया लगभग थम सा गया था उनके यहां विकास की गति थोड़ी बढ़ेगी। वे भी अपने यहां पहले से उन्नत स्वास्थ्य ढांचा को कोरोना के आलोक में देखेंगे। इस तरह वहां ग्रोथ के लिए कई सेक्टर खुलेंगे।
भारत के लिए यह चुनौती अलग तरह की होगी। नौकरियां नहीं होंगी तो समाज में अपराध बढ़ेंगे, सांप्रदायिक मतभेद के बढ़ने की आशंका अधिक होगी, सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से ऑटोमेशन की रफ्तार और बढ़ेगी,आदमी का स्थान रोबोट्स लेंगे।
सरकार को इतनी बड़ी जनसंख्या के पेट को भरने के लिए कृषि पर जोर देना होगा, छोटे कुटीर उद्योग पर फोकस करना होगा, अन्यथा स्थिति पर नियंत्रण रखना कठिन होगा। आयात को कम करने की चुनौती अलग होगी। निर्यात के क्षेत्र में संभावना क्षीण ही दिख रही होगी।
एक ही सुकून की बात है कि पूरी दुनिया किसी न किसी तरह से परेशान है।
चुनौती अभी तो महामारी है। आदमी के रोबोट हो लेने के सपने ने ही शायद उसे इस जगह पहुँचा दिया है। दुनियाँ के परेशान होने में सुकून समझ नहीं आया?
जवाब देंहटाएं