हर दिन पर्यावरण दिवस है . सम्पूर्ण प्रकृति से प्रेम करने का दिवस . पढ़िए अरुण चन्द्र रॉय की कविता वृक्ष
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वे किसी वृक्ष के तने से लगकर गले
महसूस कर सकते हैं
पिता को .
जिन्होंने मां के आँचल का सुकून
नहीं किया महसूस कभी
वे किसी वृक्ष के घने छाये से लिपट कर
समझ सकते हैं मां को .
फल फूलों से लकदक वृक्ष की शाखाओं से
जाना जा सकता है किसी सच्चे दोस्त का
निःस्वार्थ प्रेम .
कटकर किसी चूल्हे का इंधन हो जाना
वृक्ष का दधीचि हो जाना होता है
कहाँ कोई है वृक्ष सा कोई संत !
और अंत में साथ में जलकर शरीर को आत्मसात कर लेने वाला भी वृक्ष।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (14-06-2021 ) को 'ये कभी सत्य कहने से डरते नहीं' (चर्चा अंक 4095) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
कितनी गहराई इस रचना में .... बहुत भावप्रवण .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर सृजन
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